
लखनऊ। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव लौटनराम निषाद ने कहा कि देश की पूरी न्यायपालिका 50-60 परिवारों के ही गिरफ्त में है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब कार्यपालिका में अधिकारियों, कर्मचारियों का चयन त्रिस्तरीय टेस्ट व साक्षात्कार के आधार पर होता है तो न्यायपालिका में चयन परीक्षा व साक्षात्कार क्यों नहीं? निषाद ने केंद्र व राज्य सरकारों से अन्य पिछड़े वर्ग का कोटा पूरा करने के लिए बैकलॉग भर्ती शुरू करने तथा न्यायाधीशों का चयन कोलेजियम सिस्टम से न कर क्वालीफाइंग टेस्ट के आधार पर करने की मांग की है।
न्यायाधीशों का चयन
निषाद ने कहा कि देश में अनुसूचित जातियों को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 7.5 प्रतिशत तथा ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। इसके बावजूद भी ओबीसी को केंद्रीय शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों व केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण नहीं दिया गया है।
उन्होंने कहा कि आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना के मुताबिक, वर्ष 2011 में केंद्रीय विश्वविद्यालय में 8852 प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर कार्यरत है, जिसमें सवर्ण-7771, ओबीसी-1081, एससी-558 व एसटी-268 हैं। देश के विश्वविद्यालयों में 90 प्रतिशत कुलपति सवर्ण, 6.9 प्रतिशत ओबीसी, 3.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति हैं और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व शून्य है।
आरटीई के तहत मिली सूचना के मुताबिक, प्रथम श्रेणी की नौकरियों में सामान्य वर्ग-76.8 प्रतिशत, ओबीसी-6.9 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति-4.8 प्रतिशत व अनुसूचित जाति 11.5 प्रतिशत हैं। देश में 8676 मठों के मठाधीशों मंे 90 प्रतिशत ब्राह्मण, चार प्रतिशत ओबीसी व छह प्रतिशत अन्य सवर्ण हैं। 600 न्यायाधीशों में 584 ब्राह्मण, 14 अन्य सवर्ण व 1-1 अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति हैं।
उन्हांेने कहा कि एनसी बीसी का नाम एनएसईबीसी करने से पिछड़ों को अधिकार नहीं मिलेगा, बल्कि इन्हें भी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की भांति जनसंख्यानुपात में आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।