त्रेता युग का करना है दीदार, तो एक बार जरूर जाएं तुलसी घाट

वाराणसी में तुलसी घाट का प्राचीन काल से ही देवों की भूमि कहलाता रहा है. इस शहर का अपना विशेष महत्व है. यहां कई सारे देवी-देवताओं के मंदिर विद्यमान हैं | इस शहर को बनारस और काशी भी कहा जाता है। गंगा नदी किनारे बसे वाराणसी में कई पवित्र घाट हैं। जहां रोजाना पूजा-आरती की जाती है। इनमें से सबसे पवित्र और मशहूर जगह तुलसी घाट है, यह शहर गंगा नदी के किनारे स्थित है. इसके घाट कई मायनों में पूजनीय हैं | आपको बता दें पहले इस घाट को ‘लोलार्क घाट’ कहा जाता था |

इस घाट पर भगवान सूर्य का मंदिर अवस्थ्ति है। ऐसी मान्यता है कि लोलार्क कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। भक्ति काल में संत तुलसीदास जी के नाम पर इस घाट का नाम तुलसी घाट रखा गया है, खास तौर पर संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाएं और साथ ही भाद्रपद के महीने में इस घाट पर भव्य मेले का आयोजन होता है. इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है कृष्ण लीला |

जबकि लीला का समापन कार्तिक महीने में होता है। कृष्ण लीला नाट्य मंचन की शुरुआत संत तुलसी दास जी द्वारा किया गया था। इस घाट से संत तुलसीदास का बड़ा ही गहरा संबंध है. इसी घाट पर तुलसीदास जी ने हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया था. इस घाट के विषय में एक पौराणिक कथा भी है जिसे अनुसार संत तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरितमानस की रचना इसी घाट पर की थी |

इसी महीने में देव दीवाली भी मनाई जाती है. इसके अलावा भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं का भी मंचन किया जाता है और सबसे अहम बात इसी घाट पर पहली बार रामलीला का मंचन किया गया था. इसी के बाद इस घाट पर भगवान् राम के मंदिर की भी स्थापना की गई. जिसके बाद से प्रत्येक वर्ष रामलीला का नाट्य मंचन यहां होने लगा. कहा जाता रहै कि इसी घाट पर संत कवि तुलसीदास जी पंचतत्व में विलीन हो गए. उनसे जुड़े कई सारे अवशेषों को आज भी सुरक्षित रखा गया है. इन अवशेषों में हनुमान जी की मूर्ति, लकड़ी के खंभे और तकिया हैं |


अगर आप कभी बनारस जाते हैं, तो एक बार तुलसी घाट जरूर जाएं।

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