जानें क्या हैं नार्को टेस्ट, कैसे पकड़ते हैं झूठ

हाथरस हाथरस में गैंगरेप पीड़िता की मौत के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया है जिसके बाद यूपी की योगी सरकार ने सच्चाई की तह तक जाने के लिए इस मामले में आरोपियों के साथ-साथ पीड़ित पक्ष का पॉलिग्राफ यानी लाइ-डिटेक्टर या फिर नार्को टेस्ट कराएगी। तो चलिए आपको बताते है कि नार्को टेस्ट होता क्या है किन परिस्थितियों में करवाया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2010 में पॉलिग्राफ यानी लाइ-डिटेक्टर या फिर नार्को टेस्ट को लेकर कहा था कि अगर आरोपी या संदिग्ध व्यक्ति इस जांच के लिए सहमत नहीं है तो उसका टेस्ट नहीं किया जा सकता ।

नार्को टेस्ट क्या है… नार्को टेस्ट परीक्षण में संदिग्ध से जरुरी जानकारियां निकलवाने के लिए, सच जानने के लिए टुथ ड्रग्स दिया जाता है जिसके बाद व्यक्ति अर्धबेहोशी में हो जाता है और झूठ बोलने के लिए दिमाग चलाने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे ये उम्मीद की जाती है कि जो बोलेगा सच बोलेगा ।

पॉलिग्राफ टेस्ट क्या है पॉलिग्राफ टेस्ट में जब व्यक्ति का टेस्ट किया जाता है तो उस समय की सांस,हदय गति और ब्लड प्रशेर में बदलाव के हिसाब से ग्राफ ऊपर -नीचे होता है।
इस ग्राफ के हिसाब से पता चल जाता है कि व्यक्ति सच बेल रहा है कि झूठ। बाते दें उस वक्त इस विशेष मशीन में कई ग्राफ बने हुए होते है जिन आधारों पर पता लगाया जाता है । इस टेस्ट के शुरु करने से पहले उस व्यक्ति से समान्य प्रश्न पूछे जाते है जैसे पिता का नाम, परिवार के बारे में जानकारी जिसके बाद जब वह सब सही बता रहा होतो है। उसके बात उस व्यक्ति से अपराध से जुड़े सवाल पुछने लग जाते है।

आपको बता दे ऐसा नहीं है कि पॉलिग्राफ, नार्को या ब्रेन मैपिंग टेस्ट पूरा का पूरा सही होता है। इस टेस्ट में भी कुछ अपराधी चकमा देने में सफल हो जाते है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना कि अगर इन टेस्ट को ठीक तरीके से किया जाए तो सही नतीजे निकलते हैं। अपराधी सच छूपा नहीं सकता।

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