कोरोना संक्रमण के दौर में तीर्थ पुरोहितों का एक धड़ा ऑनलाइन तर्पण के पक्ष में….

कोरोना संक्रमण के दौर में ऑन लाइन तर्पण और पिंडदान को लेकर चल रही बहस के बीच तीर्थ पुरोहितों का एक धड़ा खुलकर इसके समर्थन में आ गया है। उनका कहना है कि शास्त्रों के अनुसार विषम हालात में वैकल्पिक विधान से भी पूर्ण फल प्राप्त होता है। दूसरी ओर हरिद्वार में हरकी पैड़ी की प्रबंध कार्यकारिणी संस्था श्रीगंगा सभा ऑनलाइन तर्पण और पिंडदान का विरोध कर रही है। हालांकि, गंगा सभा के अनुसार विशेष परिस्थिति में तीर्थ पुरोहित तर्पण कराने वाले व्यक्ति के प्रतिनिधि के तौर पर कर्मकांड संपन्न कर सकता है।

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष पंडित शक्तिधर शर्मा शास्त्री ने श्रीगंगा सभा के विरोध को बेबुनियाद बताया। उन्होंने कहा कि शास्त्रों के अनुसार कभी भी, कहीं भी और कैसी भी परिस्थिति में श्रद्धापूर्वक किए गए धार्मिक कार्य का पुण्य बराबर ही होता है। ऐसे में अगर कोई श्रद्धा के साथ ऑनलाइन श्राद्ध कर्म करता है कि इसमें शास्त्र और धर्म की दृष्टि से कुछ भी अनुचित नहीं है। शास्त्री कहते हैं कि आपदा के दौरान आप जिस प्रकार भी श्राद्ध करना चाहें कर सकते हैं, इससे धर्म या तीर्थ की मर्यादा भंग नहीं होती। उन्होंने बताया कि महत्व श्रद्धा का है, माध्यम का नहीं।

रामायण में बताया गया है कि भगवान राम ने वन गमन में जटायु की अंत्येष्टि, पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध सब जंगल के बीच मार्ग में ही किए। ऑनलाइन या अन्य माध्यमों के समर्थन में इससे बड़ा शास्त्रीय प्रमाण और क्या हो सकता है। ऑनलाइन तर्पण और पिंडदान करा रहे पंडित विपुल शर्मा भी यही कहते हैं। विपुल के अनुसार कोरोना संक्रमण के दौरान दूसरे शहरों से किसी भी व्यक्ति के लिए हरिद्वार आना संभव नहीं है। वह कहते हैं कि विषम परिस्थितियों के लिए वैकल्पिक विधान शास्त्र सम्मत होते हैं।

श्रीगंगा सभा के अध्यक्ष प्रदीप झा के अनुसार शास्त्रों में विषम हालात के लिए यजमान अपने तीर्थपुरोहित को प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त कर तर्पण आदि करा सकता है। वह जोड़ते हैं कि इसका सुविधा अनुरूप इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सामान्य परिस्थितियों में तर्पण और पिंडदान के लिए यजमान की उपस्थिति अनिवार्य है। भारतीय प्राच्य विद्या सोसायटी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. प्रतीक मिश्रपुरी ऑनलाइन श्राद्ध, तर्पण मामले में श्रीगंगा सभा का समर्थन करते हैं। साथ ही कहते हैं कि अगर परिस्थितियों को देखते हुए तीर्थ पुरोहित को किसी भी माध्यम से (पत्र लिखकर या फिर टेलीफोन या ऑनलाइन) संकल्प देकर तर्पण और पिंडदान कराया जा सकता है। यह शास्त्र सम्मत है।

ऑनलाइन संस्कार करा रहा शांतिकुंज 

कोरोना काल में गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में भी ऑनलाइन संस्कार कराए जा रहे हैं। इन सब कार्यों की व्यवस्था देख रहे शिव प्रसाद मिश्रा बताते हैं कि शांतिकुंज से करोड़ों गायत्री साधकों की भावनाएं जुड़ी हैं। वर्तमान परिस्थिति में देश-विदेश के लोग यहां नहीं आ सकते। ऐसे में तकनीक एक बेहतर माध्यम साबित हो रही है। ऑनलाइन संस्कार के लिए शांतिकुंज प्रबंधन की ओर से यू-ट्यूब में वीडियो अपलोड किए गए हैं। इसमें बताए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार गायत्री साधक संस्कार संपन्न कर सकते हैं। हर वर्ष पितृपक्ष में हजारों साधक अपने पितरों के निमित्त संस्कार कराने शांतिकुंज आते हैं, अब वे अपने शहर अथवा घर में ही वीडियो के माध्यम से ये कार्य कर सकते हैं।

बदरीनाथ के तीर्थ पुरोहित बोले, शास्त्र सम्मत है ऑनलाइन तर्पण व पिंडदान 

चारधाम, खासकर बदरीनाथ व केदारनाथ में देशभर के उन श्रद्धालुओं के नाम से लगातार विशेष पूजाएं हो रही हैं, जो इसके लिए ऑनलाइन बुकिंग करा रहे हैं। यह सिलसिला कपाट खुलने के दिन से ही चल रहा है। बुकिंग कराने पर दोनों धाम में श्रद्धालुओं के घर प्रसाद भेजने की व्यवस्था भी की गई है। यही नहीं, श्रद्धालु पितृपक्ष के दौरान ऑनलाइन तर्पण व पिंडदान भी करा सकते हैं। ब्रह्मकपाल तीर्थ बदरीनाथ धाम के अध्यक्ष उमानंद सती का कहना है कि गंगा अथवा अलकनंदा के तट पर  तर्पण-पिंडदान ऑनलाइन किया जा सकता है। इसका महत्व भी उतना ही है, जितना कि स्वयं आकर पिंडदान तर्पण-पिंडदान करने का। बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित आचार्य विजय पांडे कहते हैं कि पितृपक्ष में विधि पूर्वक किया गया ऑनलाइन तर्पण व पिंडदान भी पूरी तरह शास्त्र सम्मत है। 

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