कार्तिक माह में की गई भक्ति-आराधना का पुण्य कई जन्मों तक बना रहता है. इस महीने में किए गए दान, स्नान, यज्ञ, उपासना से श्रद्धालु को शुभ फल प्राप्त होते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के गंगा स्नान का बहुत महत्व होता है. इसलिए आज के दिन विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. इस दिन माता गंगा की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं व्रत करती रखती हैं.
कार्तिक पूर्णिमा की पूजन विधि
इस दिन सुबह स्नान आदि करके पूरा दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं. इस दिन गंगा स्नान के लिए भी जाते हैं, जो गंगा स्नान के लिए नहीं जा पाते वह अपने नगर की ही नदी में स्नान करते हैं.
संध्या समय में मंदिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाते हैं. लंबे बाँस में लालटेन बाँधकर किसी ऊंची जगह पर “आकाशी” प्रकाशित करते हैं. इस व्रत को ज्यादातर स्त्रियां करती हैं.
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इस दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराना चाहिए. भोजन से पहले हवन कराएं.
अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देनी चाहिए.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन करने पर शिवा, प्रीति, संभूति, अनुसूया, क्षमा तथा सन्तति इन छहों कृत्तिकाओं का पूजन करना चाहिए.
पूजन तथा व्रत के उपरान्त बैल दान से व्यक्ति को शिवलोक प्राप्त होता है, जो लोग इस दिन गंगा तथा अन्य पवित्र स्थानों पर श्रद्धा-भक्ति से स्नान करते हैं, वह भाग्यशाली होते हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था और तीनों लोकों को असुरों के प्रकोप से बचाया था. इस दिन के लिए ये भी मान्यता है कि सभी देव काशी आकर गंगा माता का पूजन करके दिवाली मनाते हैं.