अवध के नवाब ने बसाया कलकत्ता में छोटा लखनऊ, वहां के लोगों को कराया पहली बार बिरयानी से रूबरू
बिरयानी(Biryani) का एक ऐसा व्यंजन है जिसका अलग ही मज़ा है। अब चाहे वो हैदराबादी बिरयानी(Hydrabadi Biryani) हो या लखनवी बिरयानी(Lucknowi Biryani) इसके दीवाने आपको पूरी दुनियां में मिल जाएंगे। आज हम आपको ऐसी बिरयानी के बारे में बताएंगे जो मटन और चिकन से नहीं बल्कि आलू से बनाई जाती है।
कोलकाता शहर में बिरयानी बनाने का तरीका बाकियों से काफी अलग है। जिस तरह हर नई चीज़ के अस्तित्व में आने के पीछे कोई न कोई किस्सा होता है, उसी तरह कोलकाता की आलू बिरयानी बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है।13 मई, 1956 को अवध के नवाब वाजिद अली शाह को उन्हीं की रियासत से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बेदख़ल कर दिया था। जिसके बाद नवाब और उनके साथ लगभग 7 हज़ार लोग कोलकाता चले गए थे।
नवाब जब कोलकाता आये तो अंग्रेज़ शासकों ने उनको सिर्फ़ एक लाख रुपये महीने की पेंशन देने की मंज़ूरी दी। उनके साथ इतने लोगों के होने के कारण वाजिद अली शाह आर्थिक तंगी से जूझने लगे, जिसका पहला असर उनके खान–पान पर पड़ा। इस कटौती से शुरू इस सिलसिले को आज अवधी–बंगाली मुगलई विरासत कहा जाता है।
इस तंगी के कारण रोजाना गोश्त का इंतेजाम कर पाना मुश्किल होने लगा। तब नवाब साहब की तरफ से बावर्चियों को हुकुम दिया गया कि वो कोई ऐसा तरीका निकाले, जिससे कि बिरयानी में गोश्त कम लगे और उसका जायका भी बना रहे।
इसके बाद बावर्चियों ने बिरयानी बनाने के लिए गोश्त की जगह आलूओं का प्रयोग करना शुरू किया। बस फिर क्या था, नवाब को ये आलू बिरयानी इतनी पसंद आई कि धीरे-धीरे ये लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो गई। और आज के समय लोग इस बिरयानी के दीवाने हैं।
इसकी सामग्री और मसाले इस बिरयानी की जान हैं, जो इस पकवान का स्वाद बहुत ज्यादा बढ़ा देते हैं। कोलकाता की आलू बिरयानी का स्वाद और रंग दोनों ही बेहद अनोखे हैं। कोलकाता में पार्क स्ट्रीट, सॉल्टे लेक और लेक गार्डन आदि जगहों की आलू बिरयानी बहुत फ़ेमस है।
आप कभी भी कोलकाता आए तो ये आलू बिरयानी खाना न भूलें।
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