आज का इतिहास: शास्त्रीय संगीत की जीती-जागती परंपरा का नाम उस्ताद अलाउद्दीन खाँ
शास्त्रीय संगीत में अलाउद्दीन खां बस एक शख़्स का नाम नहीं है। बल्कि वह एक जीती-जागती परंपरा हैं। अलाउद्दीन खाँ का जन्म 6 सितम्बर 1972 को बंगाल ( बांग्लादेश) के ब्राम्हनबरिया ज़िले के छोटे से गांव शिबपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम सबदार हुसैन खाँ था। अलाउद्दीन के बड़े भाई फ़कीर आफ़ताबुद्दीन ने उन्हें सबसे पहले संगीत से रुबरु करवाया।
उस्ताद अलाउद्दीन खाँ (1862-6सितम्बर 1972) एक बहुप्रसिद्ध सरोद वादक थे साथ ही अन्य वाद्य यंत्रों को बजाने में भी पारंगत थे। वह एक अतुलनीय संगीतकार और बीसवीं सदी के सबसे महान संगीत शिक्षकों में से एक माने जाते हैं। सन् 1935 में पंडित उदय शंकर के बैले समूह के साथ खाँ साहब ने यूरोप का दौरा किया और इसके बाद काफी लंबे समय तक उत्तराखंड के अल्मोड़ा मे स्थित ‘उदय शंकर इण्डिया कल्चर सेंटर’ से भी जुड़े रहे।
अपने जीवन काल में उन्होंने कई रागों की रचना की और विश्व संगीत जगत में विख्यात मैहर घराने की नींव रखी। उनकी सबसे खास रिकॉर्डिंग्स में से ऑल इण्डिया रेडियो के साथ 1950-60 के दशक में की गई उनकी रिकॉर्डिंग सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं।
अलाउद्दीन खाँ साहब मशहूर सरोद वादक अली अकबर खाँ और अन्नपूर्णा देवी के पिता हैं, साथ ही राजा हुसैन खाँ के चाचा भी। इतना ही नहीं बाबा अलाउद्दीन खाँ पंडित रवि शंकर, निखिल बनर्जी, पन्नालाल घोष, वसंत राय, बहादुर राय आदि सफल संगीतकारों के गुरु भी रहे। उन्होंने स्वयं गोपाल चंद्र बनर्जी, लोलो और मुन्ने खाँ जैसे संगीत के महारथियों से संगीत की दीक्षा ली। इतना ही नहीं उन्होंने कड़ी मेहनत के बाद मशहूर वीणावादक रामपुर के वज़ीर खाँ साहब से भी संगीत के गुर सीखे।
आज का इतिहास
6 सितम्बर की महत्वपूर्ण घटनाएँ