आज का इतिहास: महान विभूति शिक्षाविद्,आस्थावान विचारक डॉ. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन 

भारत भूमि पर अनेक विभूतियों ने अपने ज्ञान से हम सभी का मार्ग दर्शन किया है। उन्ही में से एक महान विभूति शिक्षाविद्, दार्शनिक, महानवक्ता एवं आस्थावान विचारक डॉ. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन जी ने शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। और उन्ही के जन्मदिन को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। डॉ. राधाकृष्णन की मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाय़े तो समाज की अनेक बुराईयों को मिटाया जा सकता है।

आज का इतिहास: महान विभूति शिक्षाविद्,आस्थावान विचारक डॉ. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन 

ऐसी महान विभूति का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना हम सभी के लिये गौरव की बात है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के व्यक्तित्व का ही असर था कि 1952 में आपके लिये संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का पद सृजित किया गया।

शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत : स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति जब 1962 में राष्ट्रपति बने तब कुछ शिष्यों ने एवं प्रशंसकों ने आपसे निवेदन किया कि  वे उनका जनमदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा कि मेरे जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करूंगा। तभी से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ज्ञान के सागर थे।

एक बार एक प्रतिभोज के अवसर पर अंग्रेजों की तारीफ करते हुए एक अंग्रेज ने कहा – “ईश्वर हम अंग्रेजों को बहुत प्यार करता है। उसने हमारा निर्माण बङे यत्न और स्नेह से किया है।

इसी नाते हम सभी इतने गोरे और सुंदर हैं।“ उस सभा में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी भी उपस्थित थे। उन्हे ये बात अच्छी नही लगी अतः उन्होने उपस्थित मित्रों को संबोधित करते हुए एक मनगढंत किस्सा सुनाया—

“एक बार ईश्वर को रोटी बनाने का मन हुआ उन्होने जो पहली रोटी बनाई, वह जरा कम सिकी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों का जन्म हुआ। दूसरी रोटी कच्ची न रह जाए, इस नाते भगवान ने उसे ज्यादा देर तक सेंका और वह जल गई। इससे निग्रो लोग पैदा हुए। मगर इस बार भगवान जरा चौकन्ने हो गये। वह ठीक से रोटी पकाने लगे। इस बार जो रोटी बनी वो न ज्यादा पकी थी न ज्यादा कच्ची। ठीक सिकी थी और परिणाम स्वरूप हम भारतीयों का जन्म हुआ।”

ये किस्सा सुनकर उस अंग्रेज का सिर शर्म से झुक गया और बाकी लोगों का हँसते-हँसते बुरा हाल हो गया।

आज का इतिहास 

5 सितम्बर की महत्वपूर्ण घटनाएँ 

1836 – सैम ह्यूस्टन टेक्सास गणराज्य के राष्ट्रपति निर्वाचित।
1839 – चीन में पहला अफ़ीम युद्ध शुरू हुआ।

1914 – ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम और रूस के बीच लंदन समझौता हुआ।

1944 – ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अपनी स्कॉटलैंड यात्रा शुरू की।

1972 – म्यूनिख ओलंपिक के दौरान फिलीस्तीनी समूह ब्लैक सितम्बर ने 11 इजरायली एथलीटों को बंधक बना लिया और बाद में उनकी हत्या कर दी।
1975 – पुर्तग़ाल के प्रधानमंत्री गोंसालवेज़ ने अपने पद से इस्तीफा दिया।
1986- हाईजैक विमान में मुसाफिरों को बचाने की खातिर अपनी गंवाने वाली नीरजा भनोट कराची में मौत हो गई थी।

1987 – अमेरिका के टेनिस खिलाड़ी जॉन मैकनरॉय पर उनके बयान के लिये 17,500 डॉलर का जुर्माना ठोका गया।
1991 – नेल्सन मंडेला अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।
1997 – अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने सन् 2004 में होने वाले ग्रीष्म ओलम्पिक खेलों का आयोजन एथेन्स में कराने का निश्चय किया।
1999 – वाई नदी समझौते को कार्यान्वित करने तथा रुकी हुई पश्चिमी एशिया शांति वार्ता को आगे बढ़ाने हेतु इस्रायल के प्रधानमंत्री एहुद बराक तथा यासिर अराफ़ात के मध्य शर्म अल शेख़ (मिस्र) में शांति समझौते पर हस्ताक्षर।
आज जन्में व्यक्ति –
1872 – तमिल भाषा के विद्वान् और प्रख्यात समाज-सुधारक चिदंबरम पिल्लई का जन्म 5 सितंबर 1872 को हुआ था।
1888 – भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था।

1905 – प्रसिद्ध उपन्यासकार वाचस्पति पाठक का जन्म 5 सितंबर 1905 को हुआ था।

1910 – भारतीय क्रिकेटर फ़िरोज़ पलिया का जन्म 5 सितंबर 1910 को हुआ था।

1933 – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति स्थापित करने के लिए ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ पाने वाले भारतीय लक्ष्मीनारायण रामदास का जन्म 5 सितंबर 1933                   को हुआ था।
1986 – भारतीय क्रिकेटर प्रज्ञान ओझा का जन्म 5 सितंबर 1986 को हुआ था।
1986 – अशोक चक्र विजेता विमान परिचारिका नीरजा भनोट का निधन 5 सितंबर 1986 को हुआ था।
आज के महत्वपूर्ण उत्सव और अवसर 
  शिक्षक दिवस

 

 

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