समानता और आधुनिकीकरण का अनोखा संगम है ये गाँव

लखनऊ। जब हम पिंक सिटी की बात करते है तो हमारे जेहन मे जयपुर का नाम आता है, लेकिन उत्तर प्रदेश का ये गांव यूपी का मिनी जयपुर बन गया है। गांव का हर घर गुलाबी है, और यहाँ  पर  एक क्लिक पर पूरे गांव की जानकारी उपलब्ध है। जिसकी वजह से सिद्धार्थनगर का हसुड़ी गांव देश का पहला जियोग्राफिकल इनफार्मेशन वाला गाँव बन गया है।

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इस गांव में आधुनिकीकरण की वो हर एक सुविधा उपलब्ध है जो कई बड़े शहरों में भी मौजूद नही होती हैं। उत्तरप्रदेश के सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा से भनवापुर ब्लॉक के हसुड़ी औसानापुर के ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी (38 वर्ष) का कहना है कि, “गुजरात के पुंसारी गांव की तर्ज पर हमने अपने गांव को बनाया है।

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गांव का हर घर गुलाबी दिखे इसके पीछे हमारी सोच सिर्फ ये है कि लोगों में ऊँच नीच की भावना खत्म हो। एक रंग के पुतवाने से इनमें सामाजिक समरसता की भावना हो, घर से छोटे बड़ी जाति की पहचान न की जाए।” वो आगे बताते हैं, “गुलाबी रंग से पुताई का काम जारी है, पुताई होते ही दीवारों पर स्वच्छ भारत मिशन, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सर्व शिक्षा अभियान जैसे कई स्लोगन लिखवायेंगे। दीवारों पर पुरानी कलाकृतियां भी बनेंगीं जिससे पुरानी संस्कृति बनी रहे।”

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क्या है कहानी –
जिले में 1199 ग्राम पंचायतें हैं, जिसमे 1190 वें नम्बर पर कम आबादी वाली हसुड़ी औसानापुर ग्राम पंचायत है, जिसमे 1124 की आबादी है। छोटी पंचायत होने की वजह से यहाँ एक साल का बजट लगभग पांच लाख रुपए आता है। इसके बावजूद यहाँ के युवा प्रधान दिलीप ने ये ठान लिया है कि गाँव अत्याधुनिक तकनीक से पूरी तरह से लैस हो जिसके लिए वो कई जगह जाकर जानकारी एकत्र करते रहते हैं।

गाँव के मुख्य मार्ग से लेकर अन्दर स्कूल तक 23 सीसीटीवी कैमरें, 90 स्ट्रीट सोलर लाइट, 23 पब्लिक एड्रेस सिस्टम, हर तीसरे घर पर एक कूड़ादान पूरे गाँव में 40 कूड़ादान, कॉमन सर्विस सेंटर, वाई-फाई लग चुका है। गाँव के हर घर का पूरा मैप तैयार है, ‘डिजिटल हसुड़ी डाट काम’ पर गाँव के एक परिवार के बारे में 36 तरह की जानकारी उपलब्ध है।
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गांव की आशा बहु मिथलेश तिवारी ने कहा कि, “अब टीकाकरण के लिए बच्चों को घर-घर बुलाने नहीं जाना पड़ता है। यहाँ पर लगे माइक में बोल देते हैं सभी लोग अपने बच्चों को लेकर पंचायत भवन में आ जाते हैं। जो काम करने में पहले पूरा दिन लग जाता था अब वो काम कुछ घंटों में पूरा कर लेते हैं।” आशा बहु की तरह इस पब्लिक एड्रेस सिस्टम का प्रयोग गांव के प्रधान हर सरकारी योजना की जानकारी देने से लेकर कोटेदार, लेखपाल, कृषि वैज्ञानिक, आगनबाडी, सरकारी टीचर जैसे कई लोग इस्तेमाल करते हैं। घर बैठे गाँव के लोगों को कोई भी सूचना इस पुब्लिक एड्रेस सिस्टम के द्वारा तुरंत पहुंच जाती है।

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पंचायत राज अधिकारी अनिल कुमार सिंह इस पंचायत के बारे में बताते हैं, “पंचायत में जो भी विकास हुआ है वो सभी प्रयास दिलीप ने खुद किए है। ये ग्राम प्रधान द्वारा किया गया सराहनीय प्रयास है, ये उत्तरप्रदेश का पहला डिजिटल गांव है। विकास का यहाँ अभी जारी है, जब काम पूरा हो जाएगा तो जिले स्तर पर और विभाग की तरफ से इन्हें सम्मानित किया जाएगा।” वो आगे बताते हैं, “इस तरह का काम अगर कोई भी ग्राम प्रधान करता है तो इससे जनता में विश्वास बढ़ता है। ग्रामीणों के बीच विभाग और पंचायत की जो खराब छवि है इस तरह के प्रयासों से खराब बनी छवि बेहतर होती है।”

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हर घर की पहचान, उनकी बेटी का नाम
गांव के हर घर की पहचान उसके पिता के नाम से न होकर बेटी के नाम से हो, इस बारे में दिलीप त्रिपाठी कहते हैं, “बेटी की अपनी खुद की पहचान उसके अपने घर और गांव से मिले ये हमारा मानना है। पुताई के बाद हर घर पर एक नेम प्लेट लगी होगी जिसमें बेटी का नाम फिर उसके पिता का नाम लिखा होगा। जिससे बेटी के नाम से उसके घर की पहचान हो।” दिलीप बेटियों के लिए सिर्फ नेम प्लेट ही नहीं लगवा रहें हैं बल्कि हर बेटी की शादी पर 11 हजार रुपए भी देते हैं।

विकास की इस रफ्तार को देखकर हर कोई खुश है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे के साथ ही युवाओं को फ्री में वाईफाई की सुविधाएं उपलभ्ध है। गांव के युवा मोहम्मद हसन खान (28 वर्ष) ने इससे पहले शायद ही कभी सोचा हो कि उनके गांव में उन्हें फ्री में वाईफाई चलाने को मिलेगा। उनका कहना है, “अब हर महीने हमे अपना फोन रिचार्ज नहीं कराना पड़ेगा।

अपने खेत की किसी भी जानकारी के लिए तहसील और लेखपाल के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, अपने फोन में ही सभी जानकारी घर बैठे कर सकते हैं।” मोहम्मद हसन ने अपने गांव के वो दिन भी देखे थे जब बरसात में निकलने के लिए सौ बार सोचना पड़ता था वहां वाईफाई की कल्पना करना थोड़ा मुश्किल था।

कान्वेंट को फेल करने वाले सरकारी विधालय
इस गांव के सरकारी स्कूल कान्वेंट स्कूल को दे रहे मात सरकारी स्कूल में शौचालय नहीं, बैठने की सही व्यवस्था नहीं, साफ़-सफाई से कोसों दूर होते हैं। ये छवि हमारे दिमाग में बनी होती है लेकिन इस गांव का सरकारी स्कूल किसी कान्वेंट स्कूल से कम नहीं है। जहाँ पहले 40-50 बच्चे प्रतिदिन स्कूल आते थे वहीं आज इस स्कूल में हर दिन 150 से ज्यादा बच्चे उपस्थित रहते हैं। प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य रामयश निषाद ने बताया, “सात साल से इस स्कूल में पढ़ा रहा हूँ, पहले बच्चे इनरोल्ड तो होते थे पर स्कूल 40-50 ही आते थे लेकिन अब डेढ़ सौ बच्चे डेली पढने आते हैं।

प्राथमिक और जूनियर स्कूल में टाइल्स लगे हैं, पीने का साफ़ पानी, अच्छा खाना, साफ़ शौचालय, खेलने के लिए मैदान, कम्प्यूटर लैब जैसी तमाम सुविधायें हैं।” इस स्कूल में बच्चे अब खुशी-खुशी पढ़ने आते हैं। दिलीप त्रिपाठी के अच्छे कार्यों की वजह से इस स्कूल के बच्चों को सभी सुविधाएँ मिल सकें इसके लिए एचडीएफसी बैंक ने सहयोग किया है।

सिलाई सेंटर और कम्प्यूटर लैब जैसी हैं सुविधाएं महिलाओं और किशोरियों को रोजगार के लिए भटकना न पड़े इसके लिए गांव में ही सिलाई सेंटर हैं। दिलीप त्रिपाठी का कहना है, “गांव के लोगों को रोजगार के लिए पलायन न करना पड़े ये हमारी पहली कोशिश है। हमारे काम से खुश होकर डिजिटल इम्पावरमेंट फाउंडेशन के प्रमुख ओसामा मंजर ने पांच सिलाई मशीन और पांच कम्प्यूटर दिए है। हमारी हर सम्भव कोशिश रहेगी कि हमारा गांव किसी भी सुविधा से वंचित न रहे।

वो आगे बताते हैं, “किसानों को खेती की नई तकनीक की जानकारी हो। इन्हें समय से बीज, खाद सबकुछ सरकारी दामों पर मिलें इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों की समय-समय पर गोष्ठियां करते रहते हैं। हमारे गांव के हर व्यक्ति को हर सरकारी योजना का लाभ मिले जिसका वो पात्र है इसके लिए गांव में अकसर बैठकें हुआ करती हैं। पंचायत समिति के सदस्यों के साथ बैठक, खुली बैठक में सभी सदस्य शामिल हो और अपनी राय दें इसकी उन्हें पूरी छूट दी जाती है।”

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