धर्म की नगरी इलाहाबाद में सावन महीने के हर सोमवार को होती है ये अनोखी परंपरा
इलाहाबाद| धर्म की नगरी इलाहाबाद में सावन महीने के हर सोमवार को सड़कों पर घोड़े दौडाए जाने की अनूठी परम्परा निभाई जाती है। गहरेबाजी के नाम से होने वाली इस अनूठी घुड़दौड़ में घोड़ों को इक्का- तांगा या बग्घी की शक्ल में दौडाया जाता है।
इसमें जहां एक तरफ शक्ति के प्रतीक घोड़ों को तांगों व बग्घियों के पहियों पर दौड़ाकर भगवान शिव को नमन किया जाता है तो वहीं घोड़ों की संगीतमय टाप और चाल को ही हार-जीत का पैमाना माना जाता है। गहरेबाजी की इस परम्परा को देखने के लिए देश के तमाम हिस्से से लोग इलाहाबाद आते हैं।
संगम नगरी इलाहाबाद में गहरेबाजी की यह परम्परा सदियों पुरानी है। कहते हैं कि पुराने ज़माने में तीर्थ पुरोहित जब सावन के महीने में राजा- महाराजाओं संगम स्नान कराकर शिव मंदिरों में भोले बाबा के दर्शन- पूजन कराते थे। तो कई बार उन्हें दक्षिणा के तौर पर साथ लाये गए घोड़े मिल जाया करते थे। तीर्थ पुरोहित इन घोड़ों को भोले भंडारी का प्रसाद समझकर इनसे कोई काम नहीं लेते थे।
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वन के महीने में ही सड़कों पर दौड़ाया जाता था। सदियों पुरानी यह परम्परा अब वार्षिक आयोजन में बदल चुकी है और वक्त के साथ ही इसमें आधुनिकता व कुछ बदलाव भी आ गया है। इलाहाबाद के मेडिकल चौराहे की रोड पर पिछले 104 सालों से ये परंपरा चली आ रही है। हालांकि इस गहरेबाजी में आज भी घोड़ों के तेज़ या धीमे दौड़ने को जीत-हार का पैमाना नहीं माना जाता बल्कि घोड़ों की लयबद्ध व अनुशासित चाल और इसकी टाप से निकलने वाली संगीतमय टाप को ही बेहतर प्रदर्शन का आधार माना जाता है।
पहले इस सालाना आयोजन में सिर्फ संगम के तीर्थ पुरोहित यानी पण्डे ही अपने घोड़ों को दौडाते थे लेकिन पिछले कुछ सालों से इसमें उत्तर भारत के दूसरे धार्मिक शहरों के भी तीर्थ पुरोहित इसमें शामिल होते हैं।
सावन के हर सोमवार को होने वाली इस गहरेबाजी में अब जीत-हार के लिए इक्के-तांगों व बग्घियों के पीछे तेज़ हार्न बजाती मोटरसाइकिलों के झुण्ड या जीप-कार लगाए जाते हैं। कहतें हैं कि इनके शोर से घोड़े तेज़ भागने के बजाय अपनी कलात्मक चाल को बरकरार रख पाते हैं। सावन का महीना शक्ति के देवता भगवान शिव का होता है।
घोड़ों को शक्ति का और तांगों व बग्घियों पर लगे पहियों को कालचक्र का प्रतीक माना जाता है, इसलिए सावन के महीने में भोले भंडारी के सबसे प्रिय दिन यानी सोमवार को इन दोनों को आपस में जोड़कर सड़कों पर दौडाने के बहाने भगवान शिव को अनूठे ढंग से याद किया जाता है। मान्यता है कि कल्याण के देवता भगवान शिव के आशीर्वाद से कभी कोई अनिष्ट नहीं होता, इसीलिये घोड़ों और तांगों को खाली सड़कों पर दौडाए जाने के बजाय भीड़ में ही दौडाए जाने की परम्परा है।
गहरेबाजी की इस अनूठी प्रतियोगिता के लिए तीर्थ पुरोहित महीनो पहले से तैयारियां करते हैं। घोड़ों को अच्छी से अच्छी खुराक देने के साथ ही उन्हें रोजाना कड़ी ट्रेनिंग भी दी जाती है। इलाहाबाद की इस परम्परागत गहरेबाजी यानी घुड़दौड़ को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। लोगों का मानना है कि अपनी तरह की इस अनूठी दौड़ के बहाने उन्हें अपनी परम्परा और संस्कृति को जानने का मौका मिलता है।
शायद यही वजह है कि गहरेबाजी के एक-एक पल का रोमांच उठाने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते हैं। गहरेबाजी देखने का शौक रखने वालों का मानना है की इसे देखने से जोश और जूनून बढ़ता है। ख़ास बात यह की प्रयाग के तीर्थ पुरोहित अपने पुरखों की इस विरासत को सलीके से सहेजकर इसमें साल दर साल चार चाँद लगा रहे हैं।