
दिलीप कुमार
हाल ही में सहारनपुर में एक पांच साल की छोटी सी गुड़िया को आवारा कुत्ते जिंदा खा गए। यह घटना सहारनपुर जिले के चिलकाना क्षेत्र के एक बुड्ढाखेड़ा गांव की है।

जावेद नाम का एक सख्स है, जो शाम को अपने घर से कुछ दूर पर स्थित दुकान पर कुछ समान लेने के लिए जाता है, उसी के पीछे-पीछे नन्हीं सी गुड़िया भी जाती है। लेकिन जावेद समझ नहीं पाता है कि उसकी बेटी भी पीछे से आ रही है। फिर क्या हुआ वक्त बीता और रात को घर पर गुड़िया के न होने पर परिजनों ने गुड़िया को तलाशना शुरू किया तो कुछ देर बाद घर और दुकान के बीच खाली खेत में उसका शव मिला।
उस बच्ची के शव का हाल देखकर लोगों ने बताया कि उसे आवार कुत्तों ने अपना आहार बना लिया। प्रत्यक्षदर्शियों की अगर मानें तो कुत्तों ने बच्ची को इस तरह नोच-नोच कर खाया है कि शरीर के ज्यादातर भाग की हड्डियां दिखने लगी थीं, किस तरह से उस छोटी सी बच्ची का पल बीता होगा, कितना दर्द भरा रहा होगा, जब वह चीख रही होगी तो उसे एक भी परिंदा बचाने वाला नहीं रहा होगा।
आदमखोर कुत्तों के हमले के दौरान उस बच्ची ने कितना दु:ख झेला होगा, जिसका हम सब अंदाजा नहीं लगा सकते। उन आदमखोर कुत्तों के हमले से पहले उस बच्ची को पुचकारने वाले बहुत मशीहा रहें होंगे, लेकिन उस बेचारी के छटपटाहट भरे बेबसी के वक्त कोई आकर बचाने वाल तो दूर कोई सी करने वाला नहीं था। अन्तोगत्वा वह शांत हो गई होगी और कुत्तों ने उस तब तक नोचा जब तक उसका कंकाल नहीं बचा।
इस घटना को पढ़ने और सुनने के बाद हर कोई स्तब्ध हो जाएगा और उसे तरस आएगा इस 21वीं सदी पर कि किताना भी आधुनिक और वैज्ञानिक युग क्यों न आ गया हो , आज भी हम उसी ऐरा में जी रहे हैं, जब हम हथियारविहीन थे।
आपको बता दें कि जिस गांव में यह घटना घटी है, वहां के क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि उस गांव में कुछ दिन पहले कुछ बाहरी लोगों ने एक ट्रक में भरकर ढेर सारे कुत्तों को लाकर वहां छोड़ा था। जिसके बाद से वो कुत्ते आए दिन लोगों पर हमला करते थे और ज्यादा तर बच्चों को अपने चपेट में ले लेते थे। गांव वालों ने इसकी जानकारी पुलिस को भी दी थी, लेकिन पुलिस वालों के सर पर एक जूं तक नहीं रेंगा।
अब इस घटना के बाद जिला प्रशासन की नींद टूटी है, जिसके बाद सहारनपुर जिलाधिकारी महोदय गांव पहुंच कर पीड़ित परिवार से मिले और कुत्तों से निजात दिलाने का आश्वासन दिया ।
सरकारी डेटा के अनुसार पिछले तीन सालों में सहारनपुर में अब तक कुल 12 से अधिक बच्चों को कुत्तों ने अपना आहार बनाया है। आपको बता दूं कि आवारा कुत्तों को लेकर विधानसभा में भी क्षेत्रिय विधायकों के द्वारा आवाज उठाया गया था, जिसके बाद से प्रशासन के द्वारा कुत्तों का नसबंदी अभियान शुरू किया गया, लेकिन कुछ दिन बाद इस अभियान को लकवा मार दिया और यह अभियान कोमा में चला गया।
पिछले तीन चार सालों से आवार कुत्तों ने प्रदेश भर के हजारो बच्चों को अपना आहार बना चुके हैं।
इसी तरह वर्ष 2018 में सीतापुर में कुत्तों के काटने से 12 बच्चों का मौत होने का खबर सामने आई थी। मौत होने वाले बच्चों में खालीद (12) , कोमल (10), गीता (7), वीरेंद्र (9) समेत कुल 12 बच्चे आदमखोर कुत्तों के शिकार बन गए।
हालांकि इस घटना के बाद सीतापुर प्रशासन हरकत में आई थी और लखनऊ और दिल्ली नगरनिगम के मदद से कुल 30 कुत्तों को पकड़कर उन्हें जंगल छोड़ा था।

इसी तरह से एक घटना पिछले महीने मार्च में बरेली के सीबीगंज में क्षेत्र में एक बच्चे को कुत्तों ने अपना शिकार बना लिया था, जिसके बाद उसे 30 से 40 टांके लगे थे। बरेली जिला अस्पताल से पता चला कि वहां हर रोज 40 से 50 मामले आते हैं, जिसमे सबसे ज्यादा बच्चों की ही संख्या होती है।
अगर आप पिछले चार वर्षों का डाटा या खबर देखेंगे तो आपको हर महीनें कहीं न कहीं इस तरह का खबर देखने को मिल जाएगा।
दि स्टेट ऑफ पेट होमलेसनेस इंडेक्स डाटा फॉर इंडिया 2021 रिपोर्ट के मुताबिक इस समय देश में आवारा कुत्तों कि संख्या लगभग 8 करोड़ है। कुत्तों के बढ़ती इस संख्या और इनका आक्रामक रूप देखकर हमारा और आपका असहज होना स्वाभाविक है। इन आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए प्रदेश के बड़े शहरों में ठिक ठाक इंतजाम है।
लेकिन ग्रामीण उत्तर प्रदेश में आज भी आवारा कुत्तों के नियंत्रण के लिए सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यहां तक कि एक वर्ष में आवारा कुत्तों के हमले से कितने बच्चों या लोगों की मौत हुई इसका सरकार के पास संभावित डाटा के आलावा कोई निश्चित लेखा जोखा भी नहीं है।
चीन और नार्थ ईस्ट के कई इलाकों में इंसान कुत्तों को काटकर खाते थे, ये सब ने सुना था, लेकिन भारत के कुछ राज्यों में इन दिनों कुत्ते आदमखोर हो गएं, जो जिंदा इंसानों को नोच-चोथ कर खा रहे हैं, जिसका ताजा उदाहरण मैनें आपको बताया है।
कुत्तों के इस तरह के बदलते बर्ताव को लेकर भारतीय पशु विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. आरके सिंह का मानना है कि पहले बूचड़खाने चलते थे, तो कुत्तों को बचे-खुचे अवशेष मिल जाता था। इसके साथा उन्होंने बताया कि पहले मांश खाने वाले लोग खुले में हड्डियां फेख देते थे, मृतक पसुओं को भी कहीं भी खुले में छोड़ दिया जाता था, जिससे कुत्तों को खाने-पीने के लिये मिल जाता था, लेकिन अब कुत्तों को ऐसा कुछ खाने के लिए नहीं मिल रहा है इसलिए कुत्ते अपनी भूख मिटाने के लिए बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं। भोजन के कमी के वजह से उनके अंदर इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ी है।

अत: जिस तरह से ये कुत्ते खुंखार और आक्रामक होते जा रहे हैं, उसका मुख्य कारण उनके भूख को माना जा सकता है। लेकिन इनके इस हमले से जिस भी परिवार का बच्चा शिकार बनता है, उसका तो सब समाप्त हो जाता है। ऐसे में सरकार को छुट्टा पसुओं के इंतजाम करने से पहले इन आदम खोर कुत्तों को लेकर गंभीर कदम उठाना चाहिए।
ऐसे में सामाज के हर एक सदस्य को चाहिए कि अपने आस-पास के इस तरह के आवारा कुत्तों को चिन्हिंत करें और उनसे लोगों को खासकर बच्चों को सचेत और सावधान कर लोगों की जान बचाने का एक नेक कदम उठाएं।