ग़लत रास्ते पर जा रहे बच्चों को रोकने के लिए अपनाएं ये खास तरीका

नई दिल्ली। इस बदलते दौर में एक तरफ हम विकास की राह पर तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं तो वहीँ दूसरी तरफ लोगों की बदलती मानसिकता हमें ठहरने पर मजबूर कर रही है। जी हां, हम उस मानसिकता की बात कर रहे हैं जिसकी गिरफ्त में आज की युवा पीढ़ी घिरती जा रही है और इसी मानसिकता का असर है कि आज के टाइम में नाबालिग भी किसी भी अपराध को करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाते हैं। बात चाहे निर्भया रेप केस की हो या फिर प्रद्यु्म्मन हत्याकांड की इन सभी दिल दहला देने वाली घटनाओं में मुख्य आरोपी की सुई नाबालिग पर ही आकर टिकी।

मानसिकता

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि, प्रद्यु्म्मन हत्याकांड के महज तीन महीने बाद ही एक और नाबालिग लड़के के अपराध ने इस वक़्त पूरे देश भर में सनसनी मचा दी है। जो अपराध इस नाबालिग लड़के ने किया है उसे जानकर हर कोई स्तब्ध हो जा रहा है. ऐसे में हर किसी के जहन में मात्र एक ही सवाल हिलोरे ले रहा है कि, “आखिर ये युवा पीढ़ी किस दिशा में जा रही है”। मां बाप ये सोचने पर मजबूर हो चुके हैं कि, “कहीं हमारा बच्चा ऐसी मानसिकता की गिरफ्त में तो नहीं’?

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बता दें कि, 5 दिसंबर को एक नाबालिग बेटे ने अपनी मां और बहन को बेरहमी से सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि पिता ने बेटे से फोन छीन लिया था। मामला, राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा का है। ह्त्या के बाद से ही बेटा लापता बताया जा रहा है।

दरअसल, वर्तमान समय में बच्चों की देखरेख और परवरिश करना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। कोमल मन के बच्चे अपराध के दलदल में कब और कैसे फंसते जा रहे हैं इस बात की भनक न तो उन्हें है न ही उनके माता पिता को।

इसी बात को समझने के लिए बच्चों के विकास और व्यवहारिक प्रबंधन पर ही “स्टूडेंटिंग एरा संस्थान” द्वारा “केयर 2017  कान्क्लेव” का आयोजन दिल्ली स्थित पार्क होटल में किया गया था।

केयर 2017 में दिल्ली एनसीआर के लगभग 140 स्कूलों के प्रधानाध्यापकों और अध्यापक सम्मिलित हुए। इस कान्क्लेव में स्कूल एजुकेशन के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सेक्रेटरी श्री अनिल स्वरूप समेत कई दिग्गजों ने अपनी राय रखी।

पूर्व बालीवुड अभिनेत्री और योगा गुरू अनु अग्रवाल ने कहा कि “योगा व मेडिटेशन इन सबमें एक रामबाण साबित हो सकता है। विदेशों की कई बड़ी यूनिवर्सिटी में इसे अपनाया गया है। और इसके परिणाम काफी हद तक सकारात्मक मिले हैं”।

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पैनलिस्ट सईद कौसर का कहना था कि “बच्चों को इन बाल अपराध की समस्याओं से निकालने-उबारने तथा उनके विकास के लिए सर्वोपरि आवश्यकता है कि स्कूल व परिवार में बच्चों को समुचित ढंग से भावनात्मक पोषण मिले”।

 दिल्ली के मूलचंद अस्पताल के सीनियर मनोवैज्ञानिक डा. जितेद्र नागपाल का भी मानना था कि स्कूलों में अभी काउंसलर्स की भारी कमी है जिसके चलते भी इस प्रकार की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

साथ ही कई पैनलिस्ट ने इस बात का भी समर्थन किया कि हमारी लाईफस्टाइल इन सब के लिए खासी जिम्मेदार है। हम बच्चों को पैसे देने में नहीं सकुचाते हैं लेकिन वास्तव में एक बच्चे के विकास में सर्वांगीण विकास निभाने के लिए उसे अपने माता- पिता के साथ की आवश्यकता होती है जिसकी भारी कमी है। स्कूल और घर दोनों को मिलकर बच्चों के विकास में सहयोग करना होगा हम सिर्फ स्कूल पर ही बच्चे की सारी जिम्मेदारी नहीं डाल सकते हैं।

स्टूडेंटिंग एरा संस्थान के संस्थापक राजादास गुप्ता ने माना कि “बच्चों के इस हाल के लिए कहीं न कहीं एकल परिवार भी जिम्मेदार हैं”। कान्क्लेव के शीर्ष पैनलिस्ट में अल्का वर्मा, प्रिया भार्गव, कर्नल प्रताप सिंह, राजशेखरन पिल्लई जैसी हस्तियां मौजूद रहीं जो वर्तमान समय में कहीं न कहीं बच्चों के विकास और प्रबंधन में न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी सहयोग कर रहे हैं।

साईबर एक्सपर्ट गुरुराज पी ने बताया कि “सोशल मीडिया ने अपराध बढ़ाने में भूमिका निभाई है इस बात को हम नकार नहीं सकते हैं। इंटरनेट का इस्तेमाल किस हद तक करना है और बच्चों को इससे होने वाले दुष्प्रभावों को समझाना जरूरी है”।

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मनोवैज्ञानिकों ने बताई असली वजह

आज समाज में होने वाले हत्या, बलात्कार, डकैती, अपहरण जैसी संगीन घटनाएं किशोरों द्वारा बड़े पैमाने पर अंजाम दी जा रही हैं। साल 2014 में गिरफ्तार होने वाले किशोरों में 75 प्रतिशत संख्या सोलह साल से ज्यादा किशोरों की रही।

90 प्रतिशत किशोर अपराधी दसवीं भी पास नहीं हैं। इनके परिवारों की आमदनी साल में एक लाख से भी कम है। किशोरों द्वारा किए गए कुल अपराधों में से 2.5 प्रतिशत अपराध हत्या से जुड़े हैं। साथ ही 5.5 प्रतिशत किशोर अपराधी दोबारा अपराध करने वाली श्रेणी में हैं। आज पांचवीं, छठवीं, सातवीं कक्षा से ही छोटे-छोटे बच्चे मर्यादाओं की सभी सीमाएं लांघ चुके हैं।

मनोवैज्ञानिकों ने अनेक ऐसे भी कारक गिनाए हैं जिनसे बाल-अपराधों में उत्तरोत्तर वृद्धि पाई गई है जैसे असुरक्षा की भावना, भय, अकेलापन, भावनात्मक द्वन्द्व, अपर्याप्त निवास, परिवार में सदस्यों का अति-बाहुल्य, निम्न जीवन स्तर, पारिवारिक अलगाव, पढ़ाई के बढ़ते बोझ के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, आधुनिक सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक एवं पारिवारिक कारक भी अपराध की ओर उन्मुख करते हैं।

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