SPECIAL REPORT: ‘सर्कस’ से लोगों ने बना ली दूरियां, लेकिन ऐसा हुआ क्यों?

रिपोर्ट- पंकज श्रीवास्तव

गोरखपुर। आधुनिकता के इस युग में हम बहुत सी परमपराएं और कलाओं को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। ऐसी ही एक कला सर्कस है, जिसके कलाकार आज दाने-दाने को मोहताज हैं। और वे कहते हैं, जाने कहाँ गए वो दिन। देखिये ये ख़ास रिपोर्ट।

सर्कस

ये तो आज भी अपने कला के माध्यम से लोगों का मन बहलाने के लिए तैयार हैं। लेकिन आज इनकी कला की कद्र करने और ताली बजाने वाला कोई नहीं।

जी हाँ… ये वही सर्कस है, जिसको देखने के लिए लोग कई घंटों लाइनों में खड़े होकर टिकट लेने का इन्तजार करते थे। और कलाकारों की एक एक कला पर तालियों की गूंज सुनाई देती थी।

लेकिन आज तालियों की गूंज क्या कहें सर्कस की सीट भरना भी मुश्किल हो गया है। ये हाल है कि अपोलो सर्कस में काम करने वाले 100 से अधिक परिवार आज दो जून की रोटी के मोहताज है।

सर्कस मालिक के मुताबिक़, कभी सर्कस की शान हुआ करने वाले जानवरों पर जबसे वाइल्ड एक्ट के तहत रोक लगी। तब से ये सर्कस के प्रति लोगों का झुकाव कम हो गया। ऐसे में आज इलेक्ट्रॉनिक युग ने रही सही कसर भी पूरी कर दी।

वहीँ सर्कस में जोकर की भूमिका निभाने वाले छोटू का कहना है कि पहले तो हमारे एक एक कारनामें पर तालिया बजती थी। लेकिन जानवरों के जाने और मोबाईल जैसे उपकरण आने से आज दर्शक ही नहीं हैं। उन्होंने अपने कद पर निराश होते हुए कहा कि सर्कस के अलावा उन्हें कोई पूछता ही नहीं।

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वहीँ सर्कस में यदा कदा आने वाले दर्शकों का कहना है कि कभी हम सर्कस देखने के लिए दूर-दूर तक जाया करते थे। लेकिन आज के समय में हम इतने मशगूल हो गए हैं कि इतना समय देने की फुर्सत ही नहीं।

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उनका कहना है कि भारत की इस कला को बढ़ावा मिलना चाहिए। और आने वाली पीढ़ी इसे जान सके इसके लिए सर्कस को बढ़ावा देना चाहिए।

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