सोरियाटिक अर्थराइटिस को न करें नजरअंदाज, इसके बारे में जानना बेहद जरुरी

नई दिल्ली अर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी बन गई है, जिससे हमारा देश लगातार जूझ रहा है। हालांकि, चिकित्सा क्षेत्र में उन्नति से इस समस्या से ग्रसित लोगों को लाभ मिला है। लेकिन आर्थराइटिस के विभिन्न रूपों के बारे में जानना बेहद जरूरी है।

नोएडा स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन रूमेटोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. बिमलेश धर पांडेय का कहना है, “पिछले कई सालों में सोरियाटिक आर्थराइटिस के मामलों में वृद्धि पाई गई है। सोरायसिस से पीड़ित मरीजों को इससे जुड़ी परेशानी की जानकारी नहीं होती और समय के साथ सोरियाटिक आर्थराइटिस हो जाता है।”

सोरियाटिक अर्थराइटिस

एक शोध में यह बात सामने आई है कि एक-चौथाई सोरायसिस मरीज सोरियाटिक आर्थराइटिस से पीड़ित पाए जाते हैं।

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पांडे के अनुसार, सोरायटिक आर्थराइटिस का कोई स्थाई इलाज नहीं है और समय के साथ इसमें होने वाला परिवर्तन अलग-अलग मरीजों में अलग नजर आता है। समय पर जांच और इलाज के विकल्पों द्वारा इसके लक्षणों को प्रभावी रूप से संभाला जा सकता है।

मुंबई के गोरेगांव स्थित क्वेस्ट क्लीनिक में इंटरनल मेडिसिन रूमेटोलॉजी के फिजीशियन डॉ. सुशांत शिंदे ने कहा, “सोरियाटिक आर्थराइटिस कई सारे जोड़ों को प्रभावित कर सकता है, जैसे उंगलियों, कलाइयों, टखनों के जोड़ों और यह जोड़ों में सूजन, दर्द और अकड़न छोड़ जाता है।

सोरायसिस मरीजों के लिए इसके लक्षणों पर नजर रखना जरूरी है। इस बीमारी की देखभाल के लिए मरीजों को जीवनशैली में बदलाव की सलाह दी जाती है। इन प्रमुख बदलावों में संतुलित आहार लेना और धूम्रपान छोड़ना शामिल है।”

लेकिन, भारत में पाया जाने वाला सबसे आम आर्थराइटिस ऑस्टियो आर्थराइटिस है। देशभर में 22 से 39 प्रतिशत लोग इससे पीड़ित हैं। इसके कारण जोड़ों के लिए कुशन का काम करने वाले कार्टिलेज घिस जाते हैं। इसकी वजह से जोड़ों में सूजन और दर्द हो जाता है।

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ऑस्टियोआर्थराइटिस उम्र बढ़ने, मोटापा, हॉर्मोन्स के अनियंत्रित हो जाने और बैठे रहने वाली जीवनशैली के परिणामस्वरूप होता है। आमतौर पर घुटने, कूल्हे, पैर और रीढ़ इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

रूमेटॉयड आर्थराइटिस (आरए), आर्थराइटिस का एक अन्य प्रकार है। आरए एक ऑटोइम्यून डिसीज है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर पर, खासतौर से जोड़ों पर हमला करना शुरू कर देती है। नजरंदाज करने पर जोड़ों में सूजन और गंभीर क्षति हो सकती है। आरए के मरीजों की त्वचा पर गांठें बन जाती हैं जिन्हें रूमेटॉयड नॉड्यूल्स कहते हैं। यह अक्सर जोड़ों जैसे पोरों, कुहनी या ऐड़ी में होता है।

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