क्या आपको पता है कि श्राद्ध में क्यों नहीं करना चाहिए शुभ काम?
नई दिल्ली। शास्त्रों में पितृपक्ष के दौरान सभी शुभकार्य करना मना होता हैं। पितृपक्ष की समयावघि में नई वस्तुओं को खरीदना, नए कपड़े पहनना, विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश आदि जैसे काम भी वर्जित माने गए हैं।
श्राद्धपक्ष का सीधा संबंध मृत्यु से है और इसी कारण वश यह अशुभ काल माना जाता है।
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जैसे की अपने परिजन की मृत्यु के बाद हम शोकाकुल अवधि में रहते हैं और अपने अन्य शुभ, नियमित ,मंगल,वयावसायिक कार्यों को विराम देते हैं। ठीक वैसा ही भाव पितृपक्ष से भी जुड़ा हुआ है।
इस अवधि में हम पितरों से और पितर हमसे जुड़े रहते हैं। अत: अन्य शुभ-मांगलिक शुभारंभ जैसे कार्यों को वंचित रखकर हम पितरों के प्रति पूरा सम्मान और एकाग्रता बनाए रखते हैं। जानिए श्राद्ध में कौए-श्वान और गाय का महत्व –
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-श्राद्ध पक्ष में पितर, ब्राह्मण और परिजनों के अलावा पितरों के निमित्त गाय, श्वान और कौए के लिए ग्रास निकालने की परंपरा है।
-गाय में देवताओं का वास माना गया है, इसलिए गाय का महत्व है।
-श्वान और कौए पितरों के वाहक हैं। पितृपक्ष अशुभ होने से अवशिष्ट खाने वाले को ग्रास देने का विधान है।
-दोनों में से एक भूमिचर है, दूसरा आकाशचर। चर यानी चलने वाला। दोनों गृहस्थों के निकट और सभी जगह पाए जाने वाले हैं।
-श्वान निकट रहकर सुरक्षा प्रदान करता है और निष्ठावान माना जाता है इसलिए पितृ का प्रतीक है।
-कौए गृहस्थ और पितृ के बीच श्राद्ध में दिए पिंड और जल के वाहक माने गए हैं।
-श्राद्ध पक्ष में पितर, ब्राह्मण और परिजनों के अलावा पितरों के निमित्त गाय, श्वान और कौए के लिए ग्रास निकालने की परंपरा है।
-श्राद्ध पक्ष भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक होता है। इस अवधि में 16 तिथियां होती हैं और इन्हीं तिथियों में प्रत्येक की मृत्यु होती है।