चिकसाजी कारीगरों पर छाया रोजी-रोटी का संकट

रिपोर्टर – विनीत त्यागी

रुड़की। मंगलौर क्षेत्र के सराय कस्बे में पिछले कई सालों से चिकसाजी का काम कर रहे लगभग 200 परिवारों पर रोजी रोटी का संकट छाने लगा है। जिससे आज ये कारोबार धीरे धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुका है।

 चिकसाजी का काम कर रहे लगभग200 परिवारों पर रोजी रोटी का संकट

आपको बता दें कि मंगलौर के सराय कस्बे में चिकसाजी का कारोबार काफी लंबे समय से चला आ रहा है। जिसमें कारीगर बास से चटाई, चिकसाजी सहित कई सामग्रियां बनाता है लेक़िन कारीगरों को सही प्रचार प्रसार और बाज़ार ना मिलने के कारण उनका कारोबार आज विलुप्त होता नज़र आ रहा है।

वहीं बांस से बने इन सामानों को दिल्ली,हरियाणा,यूपी जैसे शहरों में निर्यात किया जाता है। लेकिन उत्तराखंड में इसका बहुत कम प्रयोग किया जा रहा है। कारीगरों का कहना है कि यदि उत्तराखंड सरकार इस ओर ध्यान दे तो इस कारोबार को बचाया जा सकता है और राज्य की आमदनी में भी बढ़ोतरी हो सकती है।

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गौरतलब है कि चिकसाजी का काम मंगलौर क्षेत्र का पुश्तेनी करोबार है लेकिन राज्य बनने के बाद से किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नही दिया।वही बहारी राज्यों के ठेकेदार ओने पौने दामों पर यहाँ चिकसाजी खरीद कर ले जाते है। जबकि नगर पालिका मंगलौर अधिशासी अधिकारी अजहर अली का कहना है इन कारीगरों के लिए कोई बाज़ार विकसित किया जाए तो इससे कारोबार में बढ़ोतरी हो सकती हैं और कारीगरों का हुनर भी जीवित रह सकेगा।

अब देखने वाली बात होगी कि मंगलौर मे चल रहे चिकसाजी कारोबार को यदि उत्तराखंड की बीजेपी सरकार छोटे उधोगों के रूप में विकसित करे तो यह कारोबार जीवित रह सकता है नही तो आने वाले समय में चिकसाजी कारोबार बन्द हो जाएगा और इन कारीगरों का हुनर भी समाप्त हो जाएगा।

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