आखिर क्या है कंबाला रेस? जिस पर सुप्रीम कोर्ट हटा ‘पीछे’

नई दिल्‍ली। सुप्रीम कोर्ट ने कंबाला रेस पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिसा है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी।

कंबाला रेस

कर्नाटक में होने वाली कंबाला रेस पर पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल ( PETA) द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इनकार कर दिया।

इसमें कंबाला को कानूनी जामा पहनाने के लिए लाए गए प्रिवेंशन ऑफ क्रूअल्टी टू एनिमल्स ( कर्नाटक अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस, 2017 को चुनौती दी गई थी।

कंबाला:

नवंबर से मार्च महीने के दौरान भैंसों की सालाना दौड़ को कंबाला कहा जाता है। इसका आयोजन केरल से सटे दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिलों में किया जाता है। इन महीनों के दौरान इस खेल का आयोजन राज्य के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग वक्त पर होता है।

पहले इस खेल के विजेताओं को नारियल दिए जाते थे, लेकिन अब गोल्ड मेडल और ट्रॉफी आदि देकर सम्मानित किया जाता है।

खेल का नियम

कंबाला का आयोजन दो समानांतर रेसिंग ट्रैक्स पर होता है। ट्रैक में पानी फैलाकर कीचड़ कर दिया जाता है। ये ट्रैक 120 से 160 मीटर लंबे होते हैं और 8 से 12 मीटर तक चौड़े होते हैं। दो भैंसों को बांधा जाता है और उन्हें प्लेयर्स द्वारा हांका जाता है। भैंसे को लेकर पहले फिनिश लाइन तक पहुंचने वाला विजेता होता है।

भैंसों को दौड़ाने के लिए रेसर उन्हें डंडे से पीटते भी हैं और कोशिश की जाती है कि भैंसे 12 सेकंड के भीतर 100 मीटर की दूरी तय कर लें। यह आयोजन कई दिनों तक चलते हैं और क्षेत्रीय स्तर पर ग्रैंड फिनाले का आयोजन होता है। इस फेस्टिवल की शुरुआत उद्घाटन समारोह के साथ होती है, जिसमें किसान अपने भैंसों के साथ जुटते हैं।

खतरा भी

इस रेस के दौरान भी कई बार हादसे हो जाते हैं। कई बार भैंसे गिर जाते हैं या फिर किसान के ऊपर ही चढ़ जाते हैं, ऐसे में उनके साथ दौड़ रहे शख्स की जान जाने तक का खतरा रहता है। इन इवेंट्स के दौरान एंबुलेंस को हमेशा तैयार रखा जाता है।

इतिहास

एक मान्यता के मुताबिक, 800 साल पहले इस खेल का आयोजन कर्नाटक के कृषक समुदाय के बीच शुरू हुआ था। यह पर्व भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले भगवान मंजूनाथ को समर्पित माना जाता है। कहा जाता है कि इस खेल के जरिए अच्छी फसल के लिए भगवान को खुश किया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार यह शाही परिवार का खेल था।

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