वो बंदा जिसने एहसासों को अल्फाज़ दिए, सबको पढ़ाया पर खुद के पन्ने कोरे रहे
मुंबई। इश्क और नगमों की दुनिया का वह सितारा जो सबसे दूर जाकर भी टिमटिमा रहा है। आज उनके जन्मदिन पर चाहनेवालों के जहन सारी यादें फिर जिंदा हुई हैं। नाम अगर अब्दुल हई हो तो उसे शायद ही कोई पहचानेगा लेकिन यहीं जब साहिर लुधियानवी बोला जाए लोगों को बहुत कुछ याद आ जाता है। आज साहिर लुधियावनी का 97वां जन्मदिन है। साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हई था।
साहिर की नज्मों में छिपे दर्द से एक अपनेपन का एहसास रहता था। उनके निधन के सालों बाद भी उन नज्मों की गहराई लोग आज भी महसूस कर पाते हैं। पढ़ने वालों के लिए तो उनकी नज्में महज खूबसूरत लेखकी रही लेकिन खुद साहिर वो उनकी जिंदगी के पन्ने थे।
उनकी गजलों और नज्मों में प्यार को जो एहसास और दर्द झलकता था वह उनका आजमाया हुआ था। कहा जाता है, ‘हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता।’ साहिर की जिंदगी भी कुछ ऐसी ही रही। नाम शोहरत तो बेशुमार मिली पर प्यार हमेशा के लिए अधूरा रह गया।
मोहब्बत के मामले में साहिर कुछ इस करद बदकिस्तम रहे कि सिर्फ पहला प्यार ही अधूरा नहीं रहा बल्कि जो भी उनकी जिंदगी में आया उनका कभी न हो पाया। पढ़ाई के दिनों में उनका पहला प्यार महिंदर चौधरी थीं। टीबी जैसी बीमारी ने उन्हें साहिर से हमेशा के लिए छीन लिया।
वक्त गुजरा साहिर की नज्मों का सिलसिला बरकरार रहा। जिंदगी में दूसरा प्यार बनकर ईशार कौर आईं। ईशार उनके साथ कॉलेज में पढ़ती थीं। प्यार को से धर्म की आग जलाती रही है। इसी आग ने साहिर के आशियाने को बसने से पहले जला दिया। घरवालों के हाथे मजबूर ईशार को पढ़ाई छोड़नी पड़ गई और वह साहिर से जुदा हो गईं।
दो बार दिल टूटने के बाद 1943 में साहिर की शायरी का पहला संग्रह ‘तलखियां’ प्रकाशित हुआ। साहिर फेमस होने लगे थे। 1944 में एक मुशायरे में पंजाबी कवियत्री और लेखिका अमृता प्रीतम ने पहली बार साहिर के साथ स्टेज शेयर किया। इस मुशायरे के साथ ही उनकी जिंदगी में प्यार का रंग अमृता प्रीतम के रूप में फिर लौटा। झिझक ने उनका घर नहीं बसने दिया। कहा जाता है कि साहिर कभी प्यार का इजहार नहीं कर पाए और अमृता उनका इंतजार करती रह गईं।
यह भी पढ़ें: क्यूट स्माइल से दीवाना बनाने वाले फरदीन का आज है जन्मदिन
हालांकि साहिर की अधूरी मोहब्बत के किस्से यहीं तक सीमित नहीं थे। 50 के दशक में उनका नाम सिंगर सुधा मल्होत्रा से भी जुड़ा। उन दिनों दोनों के रिश्तें खबरों में थे। अपने एक इंटरव्यू में सुधा ने साफ किया था कि उनके और साहिर के बीच प्यार जैसा कुछ नहीं है।
बता दें, साहिर का जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना में हुआ था। 59 की उम्र में अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था।
बॉलीवुड फिल्मों में उनकी नज्मों को कई बार गानों का पूर दिया गया है। ‘कभी कभी’, ‘अभी न जाओ छोड़कर’, ‘चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों’, ‘ये दुनिया अगर मिल भी जा तो क्या है’ और भी कई गाने उनकी यादगार नग्मों में शुमार हैं।