आरएसएस नहीं है कोई संन्यासियों का संगठन, यहां है स्त्री-पुरुषों के लिए है समान स्थान

नई दिल्ली| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत का कहना है कि आरएसएस कोई संन्यासियों का संगठन नहीं है। इसमें पुरुष और स्त्री की समान भूमिका है। यहां महिलाओं को भी बराबर की जिम्मेदारी मिलती है।

भागवत ने बीते दिनों कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा दिए गए बयान कि आरएसएस महिला विरोधी संगठन है, महिलाओं को इसमें प्रवेश नहीं करने दिया जाता, का अप्रत्यक्ष तौर से जवाब देते हुए कहा, बहुत से लोगों को मालूम नहीं है कि आरएसएस की एक महिला इकाई, जिसे राष्ट्रीय स्वयं सेविका कहा जाता है, इसमें महिलाओं की ही भागेदारी होती है।
आरएसएस नहीं है कोई संन्यासियों का संगठन, यहां है स्त्री-पुरुषों के लिए है समान स्थान
आरएसएस में पराया कोई नहीं है। सरसंघचालक सोमवार को विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय ‘भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण, व्याख्यानमाला के पहले दिन बोल रहे थे।

जो हमारा विरोध करते हैं, वे भी हमारे हैं, हमें क्षति न हो, केवल इतना ध्यान रखते हैं-

मोहन भागवत ने आरएसएस की आलोचना करने वालों को करारा जवाब देते हुए कहा, जो हमारा विरोध करते हैं, वे भी हमारे हैं। हम केवल इतना ध्यान रखते हैं, कि वे हमें क्षति न पहुंचा सकें। विरोध गलत नहीं है, अपितु यह वस्तुस्थिति के मुताबिक होना चाहिए।

आरएसएस को बताया सबसे बड़ा लोकतांत्रिक संगठन-

सरसंघचालक ने उन विरोधियों को करारा जवाब दिया है, जो आरएसएस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहते रहते हैं कि यह संगठन तो अलोकतांत्रिक है। इसमें तानाशाही का पुट बना रहता है। उन्होंने कहा, आरएसएस आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक संगठन है। इसमें सभी लोगों को अपनी बात कहने का अधिकार है। हम संघ का वर्चस्व नहीं चाहते, अगर ऐसा हुआ तो यह संघ की पराजय होगी। हमारे संगठन में कदम-कदम पर सामूहिकता है।

साईंबाबा पहले कहां थे, 33 करोड़ देवी-देवता हैं, फिर भी नए-नए आते रहते हैं-

किसी भी समाज के भले के लिए व्यक्ति और व्यवस्था दोनों का अच्छा होना जरूरी है। समाज का दबाव व्यवस्था को बदल देता है, इस विषय पर भागवत ने कहा, भारत की धरती अनेकता से भरी है, लेकिन फिर भी कुछ है जो समाज को बांधे रखती है। अब देवी-देवताओं को ही देख लो।
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33 करोड़ तो पहले ही हैं, फिर भी नए-नए देवता आते रहते हैं। साईंबाबा पहले कहां थे, मगर वे भी देवताओं में शामिल हो गए। अगर इस्लाम और ईसाइयत में भारतीयता है तो वे समाज और राष्ट्र को जोड़ने वाली हैं। कोई भी मनुष्य या समाज जब अपने मूल्यों को भूलकर आचरण शुरू कर देता है तो उसका पतन आरंभ हो जाता है। उन्होंने कहा, हिंदुत्व सभी को जोड़ता है।
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