रोहिंग्या का नया अड्डा बन गया पश्चिम बंगाल, 35 से ज्यादा संगठन सक्रिय
नई दिल्ली: रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर देश के बुद्धजीवियों के बीच लंबी बहस को अंजाम दिया जा चुका है. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर विपक्ष तक इस पर कड़ा रुख जाहिर कर चुके हैं. विगत काफी दिनों से पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की कवायद में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर सवालिया निशान लगते रहे हैं.
केंद्र में मोदी सरकार और ममता बनर्जी के बीच राजनीतिक तल्खियाँ किसी से छुपी नही हैं.मोदी सरकार की किसी भी नीति को ममता का सहयोग नही मिला है जिसके कारण देशहित के मुद्दों पर भी ममता सरकार के बगावती तेवरों पर पैनी नजर बनाए रखना सरकार की अहम जिम्मेदारी है.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बंग्लादेश ,जम्मू, हैदराबाद समेत देश के दूसरे राज्यों में रहने वाले रोहिंग्या लोगों से अपील की जा रही है कि वो 24 परगना में आकर रहें. यही नहीं, रोहिग्याओं को बसाने के लिए इन 35 से ज्यादा संगठनों ने पिछले कुछ दिनों में ही देश के अलग-अलग हिस्सों में करीब 50 बार से ज्यादा गुप्त बैठक की है.
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पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में देश भर में रह रहे रोहिग्याओं को बसाने की साजिश रची जा रही है. खुफिया सूत्रों ने इस बात का खुलासा किया है. सूत्रों के मुताबिक ऐसे 35 से ज्यादा सगठनों की पहचान की गई है जो इन रोहिंग्याओं को बसाने के लिए देश भर से पैसे इकट्ठा कर रहे हैं.
खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि रोहिंग्या लोगों की मदद के लिए कई जगहों पर ये संगठन पैसे इकट्ठा कर रहे हैं और इन लोगों को भारत की नागरिकता दिलाने की मांग कर रहे हैं. ये संगठन जम्मू, हैदराबाद, बांग्लादेश में रह रहे रोहिग्यां से कह रहे हैं कि अगर वो देश के किसी भी हिस्से में सुरक्षित महसूस न कर रहे हों तो वो पश्चिम बंगाल में आ कर रह सकते हैं.
रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर एजेंसियां अलर्ट हैं और उन्हें मदद पहुंचाने के लिए काम रहे इन संगठनों पर नजर बनाए हुए है. सूत्रों के मुताबिक, ऐसी ही एक जानकारी खुफिया एजेंसी ने गृह मंत्रालय को भी दी है.
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पिछले कुछ महीनों से खुफिया एजेंसियां लगातार कोलकाता के प्रवासी शिविरों पर पैनी नजर बनाए हुए हैं जिसमे खुलासा हुआ था कि सरकार से प्रमाणित होने के बाद कुछ रोहिंग्या मुसलमानों को टेंट लगाकर रहने की इजाजत दी गयी है और बकायदा उनको आधार कार्ड जारी किये गये हैं.
हालांकि अधिकारियों से जानकारी पुख्ता करने पर पता चला कि उनको बंगाल सरकार के सत्यापन के बाद वहां रहने की इजाजत दी गयी थी लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि जब केंद्र सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर अपनी सोच जाहिर कर चुकी है तो फिर क्या बंगाल प्रशासन खुद में स्वतंत्र प्रणाली अपनाने पर अमादा है.