
नई दिल्ली: म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जैसा बर्ताव किया जा रहा है। वह अब किसी से छुपा नहीं है। वहां के लोग पलायन करने को मजबूर हैं। ऐसी बड़ी मुसीबत में वो खुद को बेसहारा महसूस कर रहे हैं। उनके दिलों दिमाग पर अब भी वहां की परिस्थितियां उमड़ रही है।
दुनिया में सबसे प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदायों में से एक रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार में जारी हिंसा से अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं। अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाला यह समुदाय छोटी-छोटी नावों में भरकर समुद्र के रास्ते आ रहे हैं।
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किसी को नाव नहीं मिल रहा तो वो अपनी जान जोखिम में डाल कर गले तक पानी में चलकर आ रहा है। आंकड़ों की मानें तो अब तक करीब 3 लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण लेने पहुंचे हैं।
यहां खाने के सामान और राहत सामग्री की भारी कमी है। ऐसे उनके हालत बदतर से बदतर होती जा रही है। वहां के हालात ये हैं कि प्रेग्नेंट महिलाएं शिविरों में ही बच्चों को जन्म दे रही है।
इसी शरणार्थी कैंप में अपनी दिन काट रही बेगम बहार नाम की महिला ने अपनी बीती सुनाई है। इस महिला का दर्द सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जायेंगे। आइए आपको विस्तार से बताते हैं।
शिविर तक का भयानक सफ़र
अंग्रेजी अखबार से बातचीत में बेगम बहार ने बताया कि वो तीन दिनों तक नंगे पैर अपनी महीने भर की बेटी को पीठ पर बांध कर जंगलों के रास्तों से गुजरीं हैं। यह समय इतना भयावह था, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
उन्होंने कहा कि आप जानकर सन्न रह जाएंगे कि बच्ची को पीठ पर बांधने के लिए उन्होंने उसी कपड़े का प्रयोग किया जिसे वो बतौर हिजाब पहनती थीं। ऐसे में जब भूख लगती तो जमीन में कीड़ों की तलाश करती, पौधों को उखाड़ती।
उन्होंने बताया कि जहां हम जन्म लेते हैं वही हमारी मातृभूमि होती है। कोई भी अपनी मां को नहीं छोड़ना चाहता लेकिन जब ऐसी परिस्थितियां हो जायें कि सेना घरों में घुसकर मारने लग जाये। इसके बाद हमारे पास और कोई दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था।
बहार के मुताबिक जंगल में काफी दूर तक जाने के बाद बेगम बहार जब नाफ नदी तक पहुंचीं तो उन्हें एक नाव दिखी। नाव वाले ने उनकी मदद की और उन्हें सुरक्षित जगह पर पहुंचाया। नाव पर सवार होते ही वो जोर-जोर से रोने लगीं। उन्हें पता चला कि उनके पैर खून से लथपथ हैं और असहनीय दर्द हो रहा है।
सेना ने किया ऐसा बर्ताव
कॉक्स बाजार के कुतुपलंग कैंप में रह रहीं हामिदा खातून ने उन तीन महीनों को याद किया जब हर रात वे लोग भयानक डर से जूझती थी।
खातून ने बताया कि रात में सेना के जवान हमारे दरवाजे खटखटाते थे। वे जबरदस्ती घरों में घुसकर सुंदर लड़कियां खोजते थे। अगर उन्हें कोई लड़की मिल जाती थीं, तो उस लड़की को घसीटकर जंगल में ले जाते थे। वहां उसके साथ बलात्कार करते थे।
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उनमें से कुछ ही लड़कियां बचती थी, जिन्हें सड़क पर अधमरी हालत में छोड़ दिया जाता था और बाकियों का गला रेतकर मार दिया जाता था।
उन्होंने कहा कि अब हमें भले ही भूखा रहना पड़ता हो, लेकिन कम-से-कम हम यहां शांति से सो तो सकते हैं।