‘सीएचडी’ के खिलाफ परनोड रिचर्ड इंडिया और जेनेसिस फाउन्डेशन ने मिलाए हाथ

नई दिल्ली| भारत को दिल की जन्मजात बीमारियों (कॉन्जेनाइटल हार्ट डिफेक्ट/सीएचडी) से मुक्त कराने और बच्चियों को बचाने के प्रयास के तहत में परनोड रिचर्ड इंडिया चैरिटेबल फाउन्डेशन एवं जेनेसिस फाउन्डेशन ने सीएचडी से पीड़ित बच्चियों की सर्जरी में सहयोग के लिए समझौता किया है। इसके तहत परनोड रिचर्ड इंडिया 20 से अधिक लड़कियों की सर्जरी में सहयोग देने के लिए 40 लाख रुपये का अनुदान देगा। यूनिसेफ द्वारा 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लड़कों की तुलना में लड़कियों की मृत्यु अधिक संख्या में होती है क्योंकि लड़कियों के इलाज पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता।

'सीएचडी' के खिलाफ परनोड रिचर्ड इंडिया और जेनेसिस फाउन्डेशन ने मिलाए हाथ

सीएचडी नवजात शिशुओं में पाई जाने वाली सबसे आम जन्मजात बीमारी है। हमारे देश में दो लाख से अधिक बच्चे इस समस्या के साथ जन्म लेते हैं। बच्चों की मृत्यु 10 फीसदी सीएचडी के कारण होती है। प्रभावी प्रणाली न होने के कारण बहुत से बच्चों का इलाज नहीं हो पाता है। सीएचडी के 60 फीसदी मामले जीवन के पहले दो वर्षो में जानलेवा होते हैं।

मामले की गंभीरता को देखते हुए परनोड रिचर्ड इंडिया एवं जेनेसिस फाउन्डेशन ने 10,000 रुपये से कम की मासिक आय वाले परिवारों की सीएचडी से पीड़ित नवजात से लेकर 18 वर्ष तक की बच्चियों की सर्जरी में सहयोग प्रदान करने की यह पहल की है। समाज के उपेक्षित वर्ग को जरूरी सहयोग प्रदान करना और इन्हें जीवन के नए अवसर प्रदान करना इस साझेदारी का मुख्य उद्देश्य है।
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परनोड रिचर्ड इंडिया के उपाध्यक्ष कोरपोरेट अफेयर्स सुनील दुग्गल ने कहा, “पिछले सालों के दौरान संस्था ने समाज के जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई हैं और हम इसी के लिए प्रतिबद्ध हैं। सीएचडी से पीड़ित बच्चियों को इलाज उपलब्ध कराने के लिए जेनेसिस फाउन्डेशन के साथ साझेदारी करते हुए बेहद गर्व का अनुभव हो रहा है।”

इस मौके पर जेनेसिस फाउन्डेशन के संस्थापक ट्रस्टी प्रेमा एवं ज्योति सागर ने कहा, “लड़कियां प्राकृतिक रूप से ज्यादा मजबूत होती हैं, फिर भी हमारे समाज में उन्हें सही समय पर इलाज नहीं मिलता। लिंग भेदभाव के चलते इनकी दिल की बीमारी का इलाज नहीं किया जाता।”

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