स्वरा को मिला तगड़ा जवाब, सिद्धार्थ ने समझाई फेमिनिज्म की परिभाषा

मुंबईः स्वरा भास्कर ने पद्मावत देखने के बाद सोशल मीडिया पर एक ओपन लेटर लिखा था. इस लेटर में उन्होंने काफी कुछ लिखा है. अब इस लेटर का जवाब रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की फिल्म गोलियों की रासलीला के को-रायटर ने ओपन लेटर लिखा है.

इस लेटर को सिद्धार्थ ने An open letter to all Vaginas टाइटल के साथ लिखा है.

स्वरा भास्कर

सिद्धार्थ ने इस लेटर में स्वरा को फेमिनिज्म की परिभाषा समझाई है. उन्होंने लिखा कि महिलाओं के पास वजाइना होती है. यह जीवन का रास्ता है क्योंकि वह जीवन दे सकती है. एक पुरुष ऐसा नहीं कर सकता है. ऐसे में दोनों जेंडर की समानता के सवाल का सही जवाब मिल जाता है. कई एक्टर्स, फिल्ममेकर और कलाकारों का लगता है कि वो मॉडर्न सिनेमा में फेमिनिज्म की नई परिभाषा देते हुए लोगों समझाएंगे.

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हाल ही की एक फिल्म में दिखाए गए सीन में सच और झूठ का फर्क समझ लें. सीन में दिखाया गया है कि एक महिला पति/प्रेमी से धोखा खाने के बाद हाथ में शराब लिए बैकग्राउंड में ओल्ड सॉन्ग सुनते हुए गलियों में भटक रही है. ये वैसा ही जैसा कि प्यार में धोखा खाने के बाद पुरुष करते हैं. तो क्या महिलाओं का ऐसा करने से उन्हें समानता का अधिकार मिल जाता है. एक फिल्म में बेटी अपने पिता के साथ सिगरेट शेयर करती है. ऐसा अब तक सिर्फ लड़के ही फिल्मों में करते नजर आते हैं. फिल्म का यह सीन फेमिनिज्म को दिखाता है. अब बात करते हैं उन लोगों कि जो पद्मावत जो सोचते हैं पद्मावत ने फेमिनिज्म को चैलेंज कर दिया.

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क्या उन्हें फिल्म देखकर ऐसा नहीं लगा कि रानी पद्मावती अपने पति को राजगुरू के गलत इरादों के बाद उसे देश निकाला का आदेश देती है. उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ जब रानी पद्मावती खुद अपना चेहरा शीशे में खिलजी को दिखाने का निर्णय लेती है.

 

उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ जब रानी पद्मावती अपने पति को खिलजी के किले से पूरे सिस्टम के खिलाफ जाकर छुड़ाती है. उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ जब रानी रेप की जगह आग को चुनती है. यह उनका खुद का निर्णय था. सही, गलत स्ट्रांग, कमजोर सब आप पर है कि अब किस तरह वजाइना और पेनिस की परिभाषा को गढ़ती हैं.

कई बार फेमिनिज्म को गलत तरीके से परिभाषित किया गया है. लेकिन इस बात को मत भूलिए कि पुरुषों की बराबरी करना, उनके जैसा बनने की कोशिश करना, ये सब फेमिनिज्म की परिभाषा नहीं है. एक महिला ने खुद को गुलामी की जिंदगी देने से ज्यादा खुद को आग के हवाले कर दिया. यह उसकी अपनी इच्छा थी. इस बात को वजाइना और फेमिनिज्म के नाम पर गलत समझना कहां की बहादुरी है. इस तरह तो किसी महिला के त्याग को भी आप अपनी सोच से खराब कर रहे हैं.

यह फिल्म 13वीं सदी के दौरान हुई घटना को बता रही है, उसकी तुलना वर्तमान से कैसे की जा सकती है. 700 साल पहले महिलाएं रेप होने के बजाय मौत को चुनती थी. इस इतिहास को हम सभी जानते हैं. इसके बाद भी आपको आपत्त‍ि है तो ऐतिहासिक फिल्में देखना बंद कर दें.

सती प्रथा एक ऐसी परंपरा थी, जिसमें औरतों को ज्यादातर पति के मरने के बाद जबरदस्ती खुद को चिता के हवाले करना होता था. ऐसा बहुत कम हुआ है जब किसी महिला ने इच्छा से सती होना स्वीकार किया हो. वहीं जौहर एक ऐसी प्रथा है, जो स्वेच्छा से महिलाएं चुनती है. इतिहास में कहीं भी जौहर को जबरदस्ती कराने का जिक्र नहीं है.

इन सबके बाद भी पद्मावत देखने के बाद लोगों को वजाइना याद रहे तो अच्छा होगा वो इसकी शक्ति को समझें. ओपन लेटर लिखकर आपने खुद को फेमिनिज्म के रास्ते का सबसे बड़ा पत्थर बना दिया है.

 

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