Pitru Paksha Shradh: इस पौराणिक कथा के अनुसार गया में पिंडदान करने से मिलती है आत्मा को शांति

हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष की महत्वता की बात करें तो इस अवसर पर पितरों की मुक्ति के लिए पूर्वजों को याद करके दान धर्म किया जाता है। इस एक पक्ष के दौरान श्राद्ध पक्षों में पितरों का तर्पण विधि-विधान से होता है। 20 सितंबर से शुरू हो रहे पितृ पक्ष का समापन सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा जो इस बार 6 अक्टूबर 2021 को पड़ेगा। यह मान्यता है कि इन दिनों पूर्वज पितर अपने वंशजों के बीच धरती पर उतारते हैं। इस दौरान उनके वंशज उनकी आत्मा के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण और दान आदि करते हैं। ऐसा मन जाता है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए बिहार के गया में पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार गया में पिंडदान का अलग ही महत्व है। आइए जानते हैं क्या है वो पौराणिक कथा।

सृष्टि की रचना करते हुए ब्रह्माजी ने असुर कुल में एक असुर की रचना करदी थी जिसका नाम गया रखा गया था। देवताओं की उपासना में लगा रहने वाले गया को लगा कि असुर कुल में पैदा होने के कारण उसको सम्मान नहीं मिलेगा। इसलिए स्वर्ग प्राप्ति के अधिक से अधिक पुण्य कमा लेना चाहिए। इसलिए वो विष्णु जी की उपासना में लग गया। उसकी इस प्रवृत्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उसे वरदान दिया कि जो कोई भी उसे देखेगा मात्र उससे ही व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाएंगे।इस वरदान को पाकर वो लोगों के पाप घूम-घूम कर दूर करने में लग गया।

लेकिन इससे यमराज चिंतिा में पड़ गए। उन्होंने ब्रह्माजी से कहा कि उन्होंने सभी को उनके कर्मों के अनुसार ही फल भोगने की व्यवस्था की है लेकिन गयासुर उनका सारा विधान खराब कर रहा है। इसके बाद ब्रह्माजी जी एक योजना बनाई जिसके तहत समस्त देवगण उन्होंने गयासुर की पीठ पर यज्ञ किया। इससे गयासुर अचल नहीं हुआ। जब गयासुर की पीठ पर स्वंय विष्णु जी बैठे तो उसने उनका मान रखते हुए अचल हो गया। उसने खुद क एक शिला बनाकर यहीं स्थापित किए जाने का विष्णु जी से वरदान मांगा। उसने यह भी वरदान माना कि भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें।

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