Philipinns का ये नियम सिर्फ DU भी फॉलो कर ले तो बच जाएँगी लाखों ज़िन्दिगियां ! देखें क्या है वो…
फिलीपींस में नये कानून के तहत ग्रेजुएशन पूरा करने से पहले छात्रों को हर साल 10 पौधे लगाना जरूरी है. जरा सोचिए भारत में अगर सिर्फ Delhi University यह नियम लागू कर दे तो किस तरह लाखों जानें बच सकती हैं.
इस सोच को हकीकत की नजर से कुछ ऐसे देखा जा सकता है. नये सत्र से ही इस तरह के बदलाव के लिए DU विद्वत परिषद के पूर्व सदस्य इस पर मांग भी रख रहे हैं.
डीयू दिल्ली विश्वविद्यालय में नये सत्र के लिए Admission 2019 शुरू हो चुके हैं. इसी बीच फिलीपींस से आई एक खबर ने डीयू सहित दूसरे एकेडमिक संस्थानों को इस तरह की पहल के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है.
DU विद्वत परिषद के पूर्व सदस्य प्रो हंसराज सुमन का कहना है कि वह केंद्र सरकार को डीयू सहित दूसरे विश्वविद्यालयों में फिलीपींस जैसा सिस्टम बनाने के लिए पत्र लिखेंगे.
मीडिया में छपी खबरों के अनुसार फिलीपींस में यह कानून लागू होने के बाद साल में 17.5 करोड़ पौधे लग सकेंगे. वहीं अगर सिर्फ DU में यह नियम लागू हो जाए तो यहां दाखिला लेने जा रहे 62500 के करीब छात्र साल में छह लाख 25 हजार और तीन साल में 18 लाख 75000 पेड़ दिल्ली में लगाएंगे.
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अब अगर आप पौधों से इंसानी जिंदगी का ताल्लुक देखें तो डीयू के ग्रेजुएट बच्चों की एक खेप किस तरह लाखों जिन्दगी बचा सकती है. आज जब बोतलों में ऑक्सीजन बिक रही है, ऐसे में यह फैसला कितना सुकूनदेय नजर आता है.
अब इस एक पहल से सोचिए दिल्ली को 18 लाख 75000 पेड़ों से ढाई लाख टन के करीब आक्सीजन हर दिन मिलेगी.
बशर्ते यहां भी पौधरोपण फिलीपींस के कानून की तरह सख्ती से हो. वहां के नियम के अनुसार पौधे ऐसी जगहों पर लगाए जाएंगे जहां पौधे के जीवित रहने की अधिकतम संभावना हो.
मीडिया में छपी खबरों के अनुसार फिलीपींस में यह कानून लागू होने के बाद साल में 17.5 करोड़ पौधे लग सकेंगे. वहीं अगर सिर्फ DU में यह नियम लागू हो जाए तो यहां दाखिला लेने जा रहे 62500 के करीब छात्र साल में छह लाख 25 हजार और तीन साल में 18 लाख 75000 पेड़ दिल्ली में लगाएंगे. जिससे गैस चेंबर बनने वाली दिल्ली को कितनी राहत मिल सकती है.
फिलीपींस में पौधरोपण के लिए वन क्षेत्र, संरक्षित एरिया, मिलिट्री रेंज और शहरों के खास ठिकाने चुने गए हैं. पौधों का चयन भी जगह को देखकर किया जाएगा, खासकर उनके देश में तैयार प्रजातियों के पौधों को प्राथमिकता दी जाएगी. भारत में इस तरह की पहल अब वक्त की मांग बन चुकी है.