पश्मीना के धागों से बुने कई ज़िंदगियों के क़िस्से, इस शाही शॉल से झलकती है कश्मीर की सादगी और खूबसूरती

शॉल ओढ़ाना, पहनाना, भेंट करना आदि किसी का सम्मान या आदर करने का प्रतीक माना जाता है। लेकिन दुनियां में सबसे अलग और शानदार मानी जाती है पश्मीना शॉल। इसके इतिहास के बारें में तो कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलता है लेकिन माना जाता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल के बाद से कश्मीर को विश्व में सबसे खास पश्मीना शॉल बनाने के लिए जाना जाने लगा था।

पश्मीना एक फारसी शब्द पश्म से लिया गया है जिसका अर्थ है एक रीतिबद्ध ढंग से ऊन की बुनाई करना। लोगों का यह भी मानना है कि शॉल के निर्माण का इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से है। कहा जाता है कि अकबर भी पश्मीना शॉल का दिवाना था। पश्मीना में की जाने वाली कढ़ाई अकबर के आदेश से ही शुरु की गई थी।

वादियों की याद और एहसास दिलाता है पश्मीना

पश्मीना शॉल आराम और सुंदरता का प्रतीक है। इसकी दीवानगी इटली, दुबई और रशिया में भी बहुत ज्यादा है। इसमें काम जितना महीन होता है उसकी कीमत उतनी ही ज्यादा होती है। आपको बता दें कि पश्मीना का धागा मनुष्य के बाल से छह गुना ज्यादा पतला होता है। बात अगर इसकी क्वालिटी की करें तो पश्मीना 40 से 45 साल तक आपके साथ रहती है, इसी वजह से इसका लेबल शॉल के साथ बुना जाता है।

20वीं सदी के 9वें दशक में जब फैशन जगत में पश्मीना की मांग बढ़ने लगी तो इसकी कीमतों में खूब उछाल आया। पश्मीना शॉल की एक खासियत यह भी है कि इसकी स्मरणकारी कलाकृति कश्मीर की खूबसूरत वादियों की याद दिलाती है। उत्तराखंड में नेपाल से सटे कई गांव भी हथकरघे से पश्मीना शॉल बनाते हैं लेकिन यहां के हथकरघा कारीगरों में एक निराशा भी है कि उन्हें उनके बनाएं सामानों का उचित मेहनताना नहीं मिल पाता है।

इसका अंदाज है सबसे खास  

इस शॉल की खास बात यह है कि ड्रेसिंग की नई स्टाइल के शॉल जैसे ट्रेडिशनल परिधान को युवा पीढ़ी में भी पसंदीदा बना दिया। क्लच हैंडगियर जैसी एक्सेसरीज की सहायता से शॉल ड्रेसिंग को और फैशनेबल बनाया जाने लगा है। लांग स्कर्ट, इवनिंग गाउन, जैकेट जैसे आउटफिट्स के संग शॉल को नए-नए तरीके से पहना जाने लगा है।

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