अब जान लीजिये कितना होता है हमारी आत्मा का वज़न

अध्यात्म और विज्ञान में आत्मा के आस्तित्व को लेकर सवाल जवाब का सिलसिला हमेशा चलता रहता है। धार्मिक मान्यता के आधार पर आत्मा का आस्तित्व सदा से ही माना जाता है पर विज्ञान के लिए आत्मा हमेशा एक शोध का विषय रहा है। विज्ञान आत्मा के के आस्तित्व को ना तो स्वीकारता हैं और ना ही नकारता है।

अब जान लीजिये कितना होता है हमारी आत्मा का वज़न

विज्ञान के सारे सवालों के ज़वाब हमारे वेद पुराण और धार्मिक गंध्रों में पहले से ही मौजूद है।
हम सभी ने सुना है कि आत्मा का ना कोई रूप होता है, ना रंग और ना ही आकार, आत्मा अजर अमर है और इस बात का उल्लेख हमारे धार्मिक ग्रंध गीता के श्लोक में भी किया गया है।हमारी मृत्यु के बाद आत्म मुक्त हो जाती है और फिर नये शरीर में नया रूप ले लेती है।

धार्मिक गंधो की माने तो दुनिया में हर प्राणाी का आकार अलग होता है, सभी प्राणियों को उनके पिछले जन्म के कर्मो के आधार पर ही विभिन्न योनियों मे जन्म मिलता है।
पुराणों का कहना है कि आत्मा का पशु या मनुष्य किसी भी योनि में जन्म लेने से आत्मा के आकार से कोई लेना देना नहीं है।

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अगर आत्मा के आकार की बात कि जाये तो आत्मा का आकार इतना छोटा है कि अगर बालों की नोंक के सौ टुकड़े किए जायें और उसके सौवे हिस्सें के भी सौ टुकड़े किए जायें तो वह टुकड़ा आत्मा के आकार से बड़ा होगा पर विज्ञान इन सब बातों को नही मानता उसके सारे दावे शोध पर ही निर्भर रहते हैं।

आत्मा को लेकर वैज्ञानिक ने किया दा 21 ग्राम  एक्सपेरिमेंट

The 21 gram experiment

आत्मा को लेकर एक हैरतगंज शोध किया जिसका नाम था दा 21 ग्राम एक्सपेरिमेन्ट। इस वैज्ञानिक का नाम था डाक्टर डक्ंन मैगडोगल (Duncan MacDougall)  ने और इनके शोध के परिणाम ने पूरे विज्ञान जगत को चौंका के रख दिया था। इस शोध का उद्देश्य था आत्मा का वज़न पता करना और इसके लिए डाक्टर डकंन ने अपने हास्पिटल् में मरने वाले कुछ मरीज़ो को भार मॉपने वाले एक ख़ास प्रकार की मशीन फेयर विंगस वेट स्कील पर रखा गया और मरीजों का कुल भार नापा गया।

Duncan MacDougall

मरीजो के मरने के बाद देखा गया कि मरीज की मृत शरीर मे भार की क्या कमी या बढत हुई तो पाया गया कि मरने के बाद मृत शरीर का वज़न 21 दशमलव 3 ग्राम कम हो गया है और इसी शोध के आधार पर यह नतीजा निकाला गया कि आत्मा भार रहित नहीं होती है इसका कुल वज़न 21.3 ग्राम होता है। दा 21 ग्राम  एक्सपेरिमेंट सन 1907 में प्रकाशित हुआ था लेकिन इस शोध का समर्थन का शोध बहुत ही कम लोगों ने किया था इसलिए यह पूरी तरह से मान्य नहीं हैं। कई लोगों ने इसका विरोध भी किया और अभी भी यह शोध बहस का विषय बना हुआ है।

 

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