NBCC के अनोखे प्रयास से दिल्ली के इन इलाकों में 2.75 फीट बढ़ा जलस्तर !

देश और दुनिया भर के कई शहर भीषण जल संकट से जूझ रहे हैं. हाल ही में दुनिया भर के 400 शहरों पर जल संकट को लेकर एक शोध किया गया था.

शोध के बाद दुनिया भर में सबसे ज्यादा जल संकट से जूझ रहे टॉप 20 शहरों की लिस्ट जारी की गई. इस लिस्ट में चेन्नई सबसे ऊपर है. जबकि इस लिस्ट में चेन्नई के अलावा दिल्ली, कोलकाता और मुंबई भी शामिल है.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में जल संकट की स्थिति क्या है. ऐसे में भू-जल स्तर बढ़ाने के लिए दक्षिण दिल्ली के न्यू मोती बाग में एनबीसीसी ने एक अनोखा प्रयास किया. इसका नतीजा यह हुआ कि वहां भू-जल स्तर 2.75 फीट उपर उठ गया.

कैसे बढ़ा न्यू मोती बाग में भूजल स्तर

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक न्यू मोती नगर इलाके में एनबीसीसी ने रिहायशी इलाके को डेवलप किया था. इस इलाके की आबादी 3,500 है.

यहां ऐसी व्यवस्था की गई कि जमीन से पानी बिल्कुल नहीं निकाला जाय. हालांकि इलाके में तीन ट्यूबवेल को लाइसेंस दिया गया था.

लेकिन यहां 2013 से ग्राउंड वाटर निकालने के लिए बिल्कुल इजाजत नहीं दी गई थी. साथ ही सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनवाया गया. इसके जरिए सिंचाई के लिए पानी सप्लाई होती थी.

एनबीसीसी के अधिकारी के मुताबिक 8.9 लाख लीटर पानी प्रतिदिन एनडीएमसी से लिया गया. साथ ही 5.5 लाख लीटर पानी ट्रीट कर प्रतिदिन सिंचाई के लिए दिया गया.

बारिश के पानी को जमा करने के लिए कुल 6 जगह जल संग्रह स्थल बनाया गया ताकि बारिश का पानी बिल्कुल बर्बाद नहीं हो. आज 6 साल बाद नतीजा सामने है. इन प्रयासों से यहां भूजल स्तर 2.75 फीट उपर उठ गया है.

 

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पूर्वी किदवई नगर में भी भूजल स्तर बढ़ाने का प्रयास

एनबीसीसी के अधिकारी के मुताबिक ऐसा ही एक प्रयास पास के पूर्वी किदवई नगर में किया जा रहा है जहां वे रिहायशी इलाका डेवलप कर रहे हैं.

इस संबध में केंद्रीय शहरी विकास सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने मंगलवार को बताया कि एनबीसीसी का यह प्रयास साबित करता है कि बिना जलदोहन और वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट बनाकर बेहतर और स्मार्ट रिहायशी कांप्लेक्स शहर के दूसरे इलाकों में भी बनाया जा सकता है.

इसी तरह का एक प्रयास किदवई नगर में भी किया जा रहा है जहां वाटर हार्वेस्टिंग के लिए 35 जल संग्रह गड्ढे बनाए गए हैं. इनमें से 13-14 में जल संग्रह का काम शुरू हो गया है. यहां एक बार अभी भूजल स्तर मापा जाएगा और दूसरी बार इसी साल अक्टूबर में ताकि पता चल सके कि परिणाम कितना सकारात्म है.

यहां 2014 से भूजल का दोहन नहीं किया जा रहा है. गौरतलब है कि पिछले दो दशक में दिल्ली के करीब 90 फीसदी इलाके में भूजल स्तर नीचे चला गया है. इसका मुख्य कारण भूजल स्तर का ज्यादा दोहन है.

 

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