
आजकल बच्चे ज्यादातर ऑपरेशन से होते हैं। अब समान्य डिलीवरी होना भी बंद हो गई है। ऐसे में बच्चों का वजाइनल सीडिंग का टेस्ट कराना काफी आवश्यक हो गया है। वजाइनल सीडिंग एक ऐसी ही समस्या है। जिसमें शिशु के जन्म के बाद मां के वजाइना से निकले पदार्थ को शिशु के शरीर पर कॉटन स्वैब यानी (रूई का फाहा) के सहारे लगा दिया जाता है। आइए आज हम आपको इस बीमारी के बारे में बताते हैं।
क्यों किया जाता है वजाइनल सीडिंग
जब बच्चा गर्भ में होता है तो उसे कई तरह के पोषक तत्व दिए जाते हैं। ताकि वह तमाम बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार रहें। क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए तो तमाम तरह की चीजें तो झेलना आसान हो जाता है। क्योंकि जब तक बच्चा मां के गर्भ में रहता है तभी तक उसे हर तरह की बीमारी से बचा कर रखा जाता है। ऐसे में जो बच्चे नॉर्मल डिलीवरी से जन्म लेते हैं उसके साथ स्वास्थ्य संबंधित बीमारियां होने के खतरे कम हो जाते हैं। क्योंकि नॉर्मल डिलीवरी में गर्भ से बच्चे के साथ-साथ एक खास तरल पदार्थ भी निकलता है, जिसमें ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो बच्चे को बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं। इस बैक्टीरिया को गुड वैक्टीरिया कहा जाता है।
यह भी पढ़ें- रास्ते में बनाएं वेलनकन्नी के खूबसूरत स्थलों का प्लान
क्या वजाइनल सीडिंग से होती है सुरक्षा?
सी-सेक्शन से पैदा हुए बच्चों पर वजाइल सीडिंग इसलिए किया जाता है ताकि बच्चे को वैसा माहौल दिया जा सके, जैसा नॉर्मल डिलीवरी से उसे मिलना चाहिए था। लेकिन कई शोधों में ऐसा पाया गया है कि सिजेरियन से शिशु को बाहर निकालने के बाद वजाइनल लिक्विड लगाने और नॉर्मल डिलीवरी में शिशु का वजाइनल लिक्विड के संपर्क में आने में फर्क होता है।
यह भी पढ़ें- नवरात्र की पूजा से पहले वास्तु का रखें ध्यान, वरना अधूरी रह सकती है मां की आराधना
कितनी सुरक्षित है वजानइल सीडिंग
आमतौर पर शिशु का हानिकारक बैक्टीरिया से पहला सामना तब होता है, जब वे वजाइना के रास्ते बाहर आते हैं। ऐसे में उनके शरीर पर लिपटा हुआ लिक्विड उन्हें इन हानिकारक बैक्टीरिया से बचाता है। अस्पतालों में बहुत से डॉक्टर जन्म लेने वाले शिशु के लिए वजाइनल सीडिंग को जरूरी बताते हैं मगर एक्सपर्ट्स ऐसा नहीं मानते हैं। दरअसल बच्चे के मुंह, नाक और त्वचा पर वजाइनल लिक्विड लगाने से कई बार अनजाने में वजाइना के बाहरी दीवारों पर मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया या एसटीडी (सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन) के वायरस लग जाते है्ं, जो शिशु के लिए खतरनाक हो सकते हैं। इसलिए इसे नॉर्मल डिलीवरी का सुरक्षित विकल्प नहीं माना जा सकता है।