जानें… डिप्थीरिया के लक्षण और बचाव

नवजात को पैदा होने के साथ ही तहर-तरह की वैक्सीन लगाने की जरूरत पड़ती है। बिना इल वैक्सीन से नवजात की सेहत पर खतरा मंडराने लगता है। डिप्थीरिया का बैक्टीरिया हर साल सितंबर के महीने में एक्टिव हो जाता है। यह बीमारी इतनी खतरनाक होती है कि इससे मौके पर ही मौत हो जाती है। ऐसे में आज हम आपको इस बीमारी के बारे में बताने जा रहे हैं।

डिप्थीरिया

कैसे होता है डिप्थीरिया?

यह बीमारो बड़ों और बच्चों में हो सकती है। लेकिन आमतौर पर यह बीमारी बच्चों में देखने को मिलती है। डिप्थीरिया एक प्रकार के इंफेक्शन से फैलने वाली बीमारी है। इसे ऐम बोलचाल की भाषा में गलाघोंटू कहा जाता है। यह बीमारी कॉरीनेबैक्टेरियम बैक्टीरिया के इंफेक्शन का कारण होती है। इस बैकेटीरिया से इंफेक्शन सबसे पहले गले की नली से फैलता हुआ सांस की नली तक फैल जाता है। इस बीमारी से सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। डिप्थीरिया कम्यूनिकेबल डिजीज है यानी यह बड़ी आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है।

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लक्षण

– सांस लेने में कठिनाई

– गर्दन में सूजन, ठंड लगना

– बुखार, गले में खराश, खांसी

– इंफेक्शन मरीज के मुंह, नाक और गले में रहता है और फैलता है

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बच्चे का जरूर कराएं वैक्सीनेशन

वैक्सीनेशन से बच्चे को डिप्थीरिया बीमारी से बचाया जा सकता है। नियमित टीकाकरण में डीपीटी (डिप्थीरिया, परटूसस काली खांसी और टिटनेस) का टीका लगाया जाता है। 1 साल के बच्चे को डीपीटी के 3 टीके लगते हैं। इसके बाद डेढ़ साल पर चौथा टीका और 4 साल की उम्र पर पांचवां टीका लगता है। टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया होने की संभावना नहीं रहती है। बच्चों को डिप्थीरिया का जो टीका लगाया जाता है वह 10 से ज्यादा समय तक प्रभावी नहीं रहता। लिहाजा बच्चों को 12 साल की उम्र में दोबारा डिप्थीरिया का टीका लगवाना चाहिए।

 

 

 

 

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