एक नदी के लिए भिड़े दो राज्य, क्या है कावेरी जल विवाद की 137 साल पुरानी कहानी
नई दिल्ली: कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया. फैसले के मुताबिक तमिलनाडु को अब कम पानी मिलेगा. कर्नाटक ने तमिलनाडु को ये कहते हुए कावेरी का पानी देने से इंकार कर दिया था कि उनके अपने किसानों के लिए ही पानी पर्याप्त नहीं है.
कावेरी, कर्नाटक तथा उत्तरी तमिलनाडु की प्रमुख नदी है. इसका उद्गम स्थल पश्चिमी घाट का ब्रह्मगिरी पर्वत है. इसके पानी को लेकर दोनो राज्यों में विवाद है. इस विवाद को लोग कावेरी जल विवाद कहते हैं.
कावेरी जल विवाद की पूरी कहानी
तमिलनाडु ने हाल ही में सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर कर कर्नाटक को 50.52 टीएमसी फुट कावेरी जल छोड़ने का निर्देश देने की मांग की थी. तमिलनाडु सरकार ने यह मांग अपनी 40,000 एकड़ में फैली सांबा की फसल को बचाने के मद्देनज़र की थी.
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इसका जवाब देते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने था कि हम तमिलनाडु को पानी की एक भी बूंद नहीं दे पाएंगे क्योंकि हमारे पास इतना पानी ही नहीं है. कर्नाटक के जलाशयों में भी करीब 80 टीएमसी फुट पानी की कमी है.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दो सितंबर को कर्नाटक से ‘जीयो और जीने दो’ के रास्ते पर चलते हुए पानी देने की भावनात्मक अपील की थी. इस मसले पर अगली सुनवाई 16 सितंबर को होगी.
बहुत पुराना है विवाद
1924 में अंग्रेजों के समय में कावेरी जल विवाद की नींव पड़ी थी. तब इन दोनों राज्यों के बीच समझौता हुआ था. लेकिन बाद में केरल और पांडिचेरी के इसमें शामिल हो जाने से यह विवाद मुश्किल हो गया.
1972 में बनी एक कमेटी के तर्कों के आधार पर 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एक समझौता हुआ लेकिन विवाद जारी रहा.
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1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल बनाने की मांग की. 1990 में इसका भी गठन हो गया. फैसला हुआ कि कर्नाटक कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को देगा लेकिन विवाद तब भी खत्म नहीं हुआ.
कर्नाटक ब्रिटिश शासन के दौरान 1924 में हुआ समझौता न्यायसंगत नहीं मानता. कर्नाटक का कहना है कि वह नदी के बहाव के रास्ते में पहले है, इसलिए उसका नदी पर पूर्ण अधिकार है. जबकि तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत बताता है.
तमाम असफल प्रयासों की बाद आज इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया.