अमित विक्रम शुक्ला
राजनीति की बात हो उत्तर प्रदेश का ज़िक्र न हो। ऐसा तो कतई नहीं हो सकता है। वो कहते हैं न कि सूबे की फिजाओं में भी सियासत की झलक नज़र आती है। ऐसा हो भी क्यों न। आखिर इतने प्रधानमंत्री जो इस राज्य की धरती ने दिए हैं।
खैर अब जब उत्तर प्रदेश की बात हो ही चली है, तो राज्य के कुछ धुरंधर नेताओं के बारे में बता देते हैं। जिनकी कार्यशैली ने जनता को विकास के आंकलन का व्यापक मौका दिया।
मुलायम सिंह यादव, मायावती, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, अखिलेश यादव। ये वो नेता हैं। जिन्होंने देश के सबसे बड़े सूबे की बागडोर समय-समय पर संभाली।
मुलायम सिंह यादव- जिन्हें पिछड़ों का सबसे बड़ा नेता माना जाता है, खैर अब तो ‘नेता जी’ की जगह हॉट सीट पर ‘टीपू’ यानी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बैठ गये हैं। हां और मुस्लिम वोट भी इन्ही के इर्दगिर्द घूमता है।
आज हम इस ख़ास किस्से में मुलायम सिंह यादव के सुपुत्र और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बारे में बात करेंगे।
दरअसल, यूपी की राजनीति में ‘टीपू’ भैया ने एक अलग ही मुकाम हासिल कर लिया है। कारण पिता की विरासत नहीं। बल्कि उनका मिलनसार व्यवहार और युवाओं के प्रति उनकी दिलचस्पी है।
अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1973, इटावा, उत्तर प्रदेश हुआ। अखिलेश यादव ने राजस्थान मिलिट्री स्कूल धौलपुर से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने मैसूर के एस.जे. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से की उपाधि ली।
वैसे तो ‘नेता जी’ अंग्रेजी का विरोध करते थे। लेकिन बेटे को पढ़ने के लिए विदेश भेजा। जहाँ अखिलेश ने सिडनी विश्वविद्यालय (ऑस्ट्रेलिया) से Environmental engineering में Postgraduation किया।
राजनीति में एंट्री
अखिलेश यादव ने राजनीति में डेब्यू साल 2000 में 27 वर्ष की आयु में पहली बार लोकसभा का दस्य बन कर किया। उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने उस समय कन्नौज और मैनपुरी दोनों जगहों से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और दोनों ही जगहों से विजयी भी रहे थे। बाद में मुलायम सिंह ने कन्नौज की सीट खाली कर दी और उपचुनाव में वहां से अखिलेश को टिकट दिया गया।
इसके बाद वर्ष 2004 में उन्होंने कन्नौज संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था और बसपा के नेता अकबर अहमद डम्पी को हराकर चुने गए थे।
मई 2009 के लोकसभा उप-चुनाव में फ़िरोजाबाद सीट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी एस.पी.सिंह बघेल (सत्य प्रकाश सिंह बघेल) को 67,301 मतों से हराकर चुनावी जीत का सिलसिला जारी रखा।
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इसके अलावा वे कन्नौज से भी जीते। बाद में उन्होंने फ़िरोजाबाद सीट से त्यागपत्र दे दिया और कन्नौज सीट अपने पास रखी।
प्रदेश की राजनीति ‘नेता जी’ की वापसी
2012 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में ख़ास था। जहां सत्ता पर काबिज़ बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और मुख्यमंत्री मायावती ने जबरदस्त तरीके से किले बंदी करने में लगी थीं। वहीँ सियासी खेल में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने भी ऐसे-ऐसे पैंतरे चले की। बीएसपी की ‘हाथी’ को सपा की ‘साइकिल’ ने ज़ोरदार तरीके से पछाड़ते हुए। राज्य की सत्ता में प्रबल तरीके से वापसी की। जिसके बाद ही सबसे युवा मुख्यमंत्री का ताज अखिलेश यादव के सिर बंधा।
‘टीपू’ बनें मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री बनते ही अखिलेश यादव आम जनता से सीधे जुड़ने के लिए ताना बाना बुनना शुरू कर दिया था। जनता दरबार लगाने का फैसला, मुख्यमंत्री आवास- 5 कालीदास मार्ग की सड़क आम आदमी के लिए खोलना, लोगों की परेशानी को ध्यान में रखते हुए अपने काफिले में वाहनों की संख्या कम करने जैसे कई सराहनीय कदम हैं। जो बताते हैं कि युवा मुख्यमंत्री अखिलेश अपनी सरकार में आम आदमी को केंद्र में रखकर उससे निकटता को अपनी ताकत बनाना चाहते हैं।
जनता दरबार
18 अप्रैल 2012 से वह हर बुधवार को जनता दरबार आरम्भ हुआ, जिसमें लोग सीधे मुख्यमंत्री से संवाद कर उन्हें अपनी समस्याएं बता सकते थे।
युवाओं में गज़ब का रुतबा
अखिलेश यादव में अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह से ग्रामीण वातावरण का असर दिखता है। वे समाजवादी पार्टी के भविष्य के नेताओं में शामिल हैं। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी का नया चेहरा बनकर उभरे हैं।
वे अपने पिता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की तरह पहलवानी के शौकीन नहीं हैं। बल्कि उन्हें फुटबॉल खेलने, देखने और अमिताभ बच्चन की फ़िल्में देखने में ज्यादा मजा आता है।
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लैपटॉप में अपने चुनाव क्षेत्र के आँकड़ों की जानकारी रखने वाले अखिलेश आजकल साइकिल की सवारी करते हुए दिखाई दे जाते हैं।
सबसे युवा मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनें। पहले यह रिकार्ड मायावती के नाम था। 15 मार्च 2012 को जब वह मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उस रोज वह 38 साल आठ महीने और 14 दिन के थे।
मायावती जब पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं, तो उनकी उम्र 39 साल चार महीने और 18 दिन थी।
विवादों से भी रहा गहरा नाता
मार्च 2012 के विधान सभा चुनाव में 224 सीटें जीतकर मात्र 38 वर्ष की आयु में ही वे उत्तर प्रदेश के 33वें मुख्यमन्त्री बन गये।
लेकिन जुलाई 2012 में जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने उनके कार्य की आलोचना करते हुए व्यापक सुधार का सुझाव दिया तो जनता में यह सन्देश गया कि सरकार तो उनके पिता और दोनों चाचा चला रहे हैं, अखिलेश नहीं। वैसे तो यह कोई पहली बार नहीं था। जब ‘नेता जी’ ने कड़े शब्दों में अखिलेश की आलोचना की हो। वे मंच से कई बार अखिलेश को हिदायत देते देखे गये हैं।
अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच पार्टी अध्यक्ष को लेकर चली ज़ोरदार जंग से कौन वाकिफ नहीं होगा। जब पूरा यादव परिवार अखिलेश के खिलाफ हो गया था।
चाचा शिवपाल की तल्खी तो आज भी सार्वजानिक मंचों पर दिख जाती है। शायद यही कारण भी रहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को भारतीय जनता पार्टी ने चारो खाने चित्त कर दिया।
यही नहीं उनकी सरकार को दूसरा झटका तब लगा जब एक आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को निलम्बित करने पर चारों ओर से उनकी आलोचना हुई। जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें नागपाल को बहाल करना पड़ा।
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में 43 व्यक्तियों के मारे जाने व 93 के घायल होने पर कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना ने आकर स्थिति पर काबू किया। मुस्लिम व हिन्दू जाटों के बीच हुए इस भयंकर दंगे से उनकी सरकार की बड़ी किरकिरी हुई।
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