आ रहे हैं पितरों के दिन, इन खास बातों का ख्याल रख कर करें तर्पण

पितृपक्ष5 सितंबर 2017 से पितृपक्ष यानी श्राद्ध शुरू हो रहे हैं. हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है. पितृपक्ष में पितृगण का श्राद्ध करने से पितर खुश होते है. पितरों के प्रसन्न होने से परिवार पर पितृ दोष नहीं आता है और परिवार में खुशहाली आती है. शास्त्रों के अनुसार इस दौरान सूर्य दक्षिणायन होता है जो पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग प्रदान करता है.

पितृ पक्ष में लोग श्राद्ध कर्म द्वारा अपने पूर्वजों यानी पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार पिंडदान, तर्पण करते हैं. अगर किसी को पितरों की मृत्यु की तिथि मालूम नहीं होती है तो वह पितृ पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन अपने समस्त पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं.

हम आपको पितृ पक्ष से जुड़ी खास बातें बताने जा रहे हैं, जिनसे पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं बल्कि पितृ दोष से भी मुक्ति पा सकते हैं.

खास मान्यता

मृतक के लिए श्रद्धा से किए गए तर्पण और पिंडदान को ही श्राद्ध कहा जाता है और ग्रंथों में तीन पीढ़ियों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है.

मान्यताओं के अनुसार, यमराज हर साल श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं. ताकि वो अपने परिवार वालों के पास जाकर श्राद्ध कर्म को ग्रहण कर सकें.

श्राद्ध का समय

श्राद्ध का सबसे अच्छा वक्त तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे यानी दोपहर के बाद ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए. सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंच पाता है.

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खास बातें

पितृपक्ष में देवकार्य से भी ज्यादा पितृ कार्य को महत्व दिया जाता है. वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण और विष्णु पुराण समेत कई धार्मिक ग्रंथों में भी श्राद्ध कर्म के महत्व का वर्णन मिलता है.

पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के बीच अपने घर परिवार के पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए जो श्राद्ध कार्य किए जाते हैं उससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

इस दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दी जाती है.

तैत्रीय संहिता के अनुसार, पूर्वजों की पूजा हमेशा, दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करनी चाहिए. सृष्टि की शुरुआत में दिशाएं देवताओं, मनुष्यों और रुद्रों में बंट गई थीं, इसमें दक्षिण दिशा पितरों के हिस्से में आई थी.

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