…तो फेल हो गई कैशलेस? फिर गया सरकार के अरमानों पर पानी!

नई दिल्ली। देश में 8 नवंबर 2016 की तारीख एक इतिहास बन चुकी है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नोटबंदी का ऐलान किया था। इसके साथ ही उन्होंने कैशलेस व्यवस्था पर भी जोर डाला। कारण पीएम मोदी ने कालेधन पर लगाम लगाने के लिए यह बड़ा और क्रांतिकारी कदम उठाया था। जनता भी सरकार के समर्थन में रही और बढ़चढ़ कर इस मुहीम को सिर-आंखो पर लिया। जनता का मानना था कि यह कदम भविष्य में बड़ा बदलाव लाएगा। साथ ही देश में जो अमीरी और गरीबी की खाई बन गई है, उसे मिटाने में भी कहीं हद तक कारगर साबित होगा।

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कैशलेस व्यवस्था

वहीं परिणाम जो निकल कर आये वो शायद जनता में पनपी इस उम्मीद पर पूरी तरह से पानी फेरने वाले हैं।

खबरों के मुताबिक़ देश में करेंसी का सर्कुलेशन एक बार फिर नोटबंदी से पहले के स्तर पर पहुंच गया है। केन्द्रीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में करेंसी का सर्कुलेशन नोटबंदी से पहले के स्तर का 99.17 फीसदी हो चुका है।

आरबीआई के मुताबिक 23 फरवरी 2018 तक अर्थव्यवस्था में संचालित कुल करेंसी 17.82 लाख करोड़ रुपये है। वहीं नोटबंदी से ठीक पहले 4 नवंबर 2017 तक कुल करेंसी सर्कुलेशन 17.97 लाख करोड़ रुपये था।

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बता दें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान करते हुए अर्थव्यवस्था में संचालित 500 और 1000 रुपये की करेंसी को प्रतिबंधित करते हुए लगभग 8 लाख करोड़ रुपये की कुल मुद्रा को वापस ले लिया था। इसकी जगह रिजर्व बैंक ने पहले 2000 रुपये और फिर 500 रुपये की नई करेंसी को संचालित किया।

नोटबंदी का यह फैसला केन्द्र सरकार ने देश में कालेधन पर लगाम लगाने, नकली करेंसी पर नकेल कसने और देश में डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के लिए उठाया था।

केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद नवंबर 2016 से देश में पेमेंट करने के लिए डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल में बड़ा इजाफा देखने को मिला था। जिसके बाद देश के सभी बैंकों ने डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल के लिए बड़ी तैयारी की। लेकिन आरबीआई के जनवरी 2018 के बाद के आंकड़ों में देखा गया कि देश में करेंसी ट्रांजैक्शन बढ़कर 89,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया जबकि डिजिटल माध्यमों से पेमेंट का आंकड़ा तेजी से गिर गया।

रिजर्व बैंक के इन आंकड़ों ने अर्थशास्त्रियों को भी हैरान कर दिया है। वहीं केन्द्र सरकार के लिए भी यह चुनौती है, क्योंकि नोटबंदी लागू करने के लिए केन्द्र सरकार ने देश में कैशलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने का हवाला भी दिया था।

लिहाजा, अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या करेंसी सर्कुलेशन के स्तर से नोटबंदी का एक अहम मकसद विफल हो चुका है और अब देश डिजिटल माध्यमों से दूर हो रहा है?

हालांकि सरकार हमेशा से ही इस कदम को सराहती आई है। इतना ही नहीं हर मौके पर खुद की पीठ भी थपथपाई जाती है।

वहीं आम जनता की राय लेने के बाद परिणाम जो निकल कर आते हैं, उनके मुताबिक़ कैशलेस व्यवस्था के फेल होने के पीछे बैंको द्वारा लिया जाने वाला ट्रांजैक्शन अमाउंट और साथ ही अन्य कई तरह के चार्जेज जो कि डिजिटल माध्यम का उपयोग किये जाने पर काटे जाते हैं, बताया जा रहा है।

वहीं जनता एमएबी यानी मंथली एवरेज बैलेंस वाले नए नियम पर भी नाखुश नजर आई। हालांकि पहले लागू किये गए एमएबी के अमाउंट को बाद में कम कर दिया गया।

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