पीएम मोदी के आमंत्रण पर इंडिया गेट पहुंची छात्राएं, बदले में मिला कुछ ऐसा कि देश को आई शर्म  

पीएम मोदी का स्पेशल निमंत्रणनई दिल्ली। लौह पुरुष यानी सरदार वल्लभ भाई पटेल की 142वीं जयंती का अवसर। इंडिया गेट के सामने खचाखच जमा भीड़। आखिर होती भी क्यूं न… पीएम मोदी का स्पेशल निमंत्रण जो मिला था देश की जनता को ‘रन फॉर यूनिटी’। खुशी का माहौल था। चारो ओर मोदी के नाम की गूँज जो ‘एकता दिवस’ पर ‘श्रेष्ठ भारत’ का परिचायक बन रही थी। उसी गूँज के बीच चंद लड़कियों के विरोध की आवाजे मानों कहीं गुम सी गईं। कोई भी उन्हें सुन नहीं पा रहा था।

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आखिर ऐसा क्या घटा उस भीड़ में जो इन लड़कियों को रास नहीं आया। जो शामिल होने आई थी एकता के लिए, लेकिन कुछ ओछे और घटिया लोगों के कारण शर्मिंदगी महसूस कर वहां से चली गईं।

उसी भीड़ में अचानक ऐसा क्या हुआ? जो वहां मौजूद उन लड़कियों को नागवार गुजरा। आखों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रेष्ठ भारत को करीब से जानने की तमन्ना लिए अन्य लोगों की तरह उस हुजूम में ये चंद लड़कियों का समूह भी शामिल होने आया था। पर बदले में इन्हें भीड़ का वो चेहरा देखने को मिला, जिसको जड़ से ख़त्म करने का भाजपा सरकार दम भरती है।

‘आज तक’ के मुताबिक़ मंगलवार को 14 वर्षीय स्मृति (बदला हुआ नाम) अपनी कबड्डी टीम के साथ सुबह ही इंडिया गेट पहुंच गई।

हालांकि उनके लिए पास ही स्थित ध्यानचंद स्टेडियम में प्रैक्टिस के लिए आऩा रोज का नियम है लेकिन 31 अक्टूबर की तारीख के लिए उनके खास मायने थे।

एक तो देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल की जयंती पर एकजुटता दिखाने के आयोजन में हिस्सा लेने की उत्सुकता, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रू-ब-रू होने की खुशी। बच्चियां उमंग से भरी थीं कि प्रधानमंत्री के ‘श्रेष्ठ भारत’को लेकर उन्हें और जानने को मिलेगा।

आखिर वो वक्त भी आ गया। एक तरफ पीएम मोदी मंच पर खड़े सबका अभिनंदन कर रहे थे और दूसरी तरफ लोगों का हुजूम सामने से गुज़र रहा था।

स्मृति और उसकी सहेलियां पूरे आयोजन के दौरान धक्कामुक्की का ही सामना करती रहीं। बात यही तक रुक जाती तो गनीमत रहती।

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सुनिए देश की एक बेटी की आपबीती उसी की जुबानी। स्मृति और उसकी टीम से जब पूछा गया कि वे सब आयोजन के दौरान कहां थीं, तो स्मृति भावुक हो उठी। साथ ही बोली- ‘ हमें बहुत निराशा हुई, यहां लड़के इतनी हूटिंग कर रहे थे कि हम बता नहीं सकते। बैठे बैठे कभी हमारे ऊपर पानी की बोतल फेक रहे थे तो कभी कमेंट कस रहे थे।’

इसी बीच टीम की सबसे छोटी सदस्य दीया (बदला हुआ नाम) बोली- ‘हम मैदान में बैठे थे, वहां लड़के बदतमीज़ी कर रहे थे। कभी हमारे बाल खींच रहे थे, तो कभी सरदार पटेल की तस्वीर छपे पर्चों को फाड़ हवाई जहाज बना हम पर फेक रहे थे। वहां मौजूद गार्ड भी हमसे इतनी ध्क्का मुक्की कर रहे थे हम किससे कहते? हमें बहुत खराब लगा।’

स्मृति और दीया की ये शिकायत उस जगह पर हो रहे बर्ताव को लेकर थी, जिस जगह पर देश का टॉप सरकारी अमला कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटा था। एकता के उत्सव में भागीदारी के लिए ये बेटियां घर से बड़े उत्साह के साथ निकलीं थी लेकिन वहां का हाल देख सिहर कर रह गईं।

सपना (बदला हुआ नाम) का तो सपना ही टूट गया। सपना ने बताया,‘औरों ने मना किया तो भी हम दौड़ने निकले थे कि एकता दिवस का हिस्सा बनेंगे। पर वहां इतनी गंदगी थी और लोग ज़बरदस्ती हाथ लगा रहे थे, मुझे ही नही मेरी दोस्तों के साथ भी ये हुआ इसलिए हमें दौड़ छोड़ कर वापस आना पड़ा।’

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा तो बहुत जोरशोर से दिया जाता है, लेकिन मंगलवार को इन बच्चियों को जो भुगतना पड़ा, क्या वो ‘श्रेष्ठ भारत’की कल्पना से किसी तरह भी मेल खाता है।

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सवाल पूरे समाज के लिए भी है। जब इतने हाईप्रोफाइल कार्यक्रम में बच्चियों जो मन में सोच कर आई थीं, वो पूरा होना तो दूर, बदसलूकी के चलते सहना बहुत कुछ पड़ गया। अब सोचिए, दूरदराज के इलाकों में, कम रोशनी वाली जगहों पर, घर से अकेले निकलना बच्चियों के लिए कितना सुरक्षित होता होगा?

जब तक पूरी सुरक्षा का आश्वासन ना मिले ये बच्चियां सुनहरी उम्मीदों के खुले आसमान पर उड़ान भरें भी तो कैसे?

‘श्रेष्ठ भारत’ की बुलंद तस्वीर तभी साकार हो सकती है जब इन बच्चियों को मंच के दायरे से दूर, कैमरे के लैंसों से परे, कागजी लकीरों को पार कर स्वतंत्र और सुरक्षित कैनवास मिले।

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