शनि की साढ़े साती को न करें नजरअंदाज, कभी नहीं मिलेगा सुख

शनि की साढ़े सातीशनिदेव को न्याय का देवता माना जाता हैं। शनि भगवान कर्म प्रधान देवता हैं। ज्योतिषीय मान्यता है कि शनिदेव व्यक्ति के पूर्वजन्मों के कर्मों और इस जन्म के कर्मों के अनुसार व्यक्ति को कष्ट और ख़ुशी देते हैं। शनि देव के प्रभाव जन्म कुंडली में शनि की उच्च और नीच स्थिति से दिखाई देने लगते हैं।

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मगर जन्म कुंडली में अलग-अलग समय आने वाली शनि की साढ़े साती और ढैया की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। अलग-अलग समय पर कुंडली में शनि के आने पर शनि भगवान जातक को अलग-अलग परिणाम भी देते हैं।

मान्यता है कि शनिदेव एक राशी में साढ़े सात साल तक रहते हैं। और जब शनि की दशा ढाई वर्ष की अवधि के लिए कुंडली में होती हैं तो इसे ढईया कहा जाता है। जब शनि का ढईया लगता है तो व्यक्ति को अच्छे और बुरे दोनों परिणामों का सामना करना पड़ता है।

शनि की दो दशाओं में से ढईया को विषय वस्तु बनाकर जब हम बात करते हैं स्थिति स्पष्ट होती है। ज्योतिषी इसे लघु कल्याणी ढईया के नाम से भी संबोधित करते हैं। ढईया के समय शनि ग्रह की 3 री, 7 वीं और 10 वीं दृष्टि काफी शुभ मानी गई है।

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शनि के विषय में कहा जाता है कि शनि किसी राशि से 4 थे स्थान पर होता है। शनि अपनी दृष्टि से राशि के 6 ठे स्थान, 10 वें स्थान और जिस राशि में होता है राशि को अपनी दृष्टि से प्रभावित करता है। कई बार ढईया नौकरी में परेशानी, हर काम में परेशानी लाता है।

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