क्यों मनाया जाता है गणपति महोत्सव, पढ़िए पूरी कहानी

गणेशोत्सवगणेश चतुर्थी प्रति वर्ष शुक्ल भद्र पद के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह 25 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। गणेशोत्सव के लिए तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। इसके लिए पंडाल आमतौर पर स्थानीय निवासियों द्वारा वित्त पोषित होता है या इसे मेलों और कार्यशालाओं के माध्यम से एकत्र किया जाता है। मूर्ति बनाने प्रक्रिया महाराष्ट्र में मुख्य रूप से भगवान गणेश के पैरों की पूजा के साथ शुरू होता है।

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मूर्तियों को आमतौर पर 15-20 दिन पहले पंडालों में लाया जाता है। घर में त्योहार की शुरुआत भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थापना से होती है। परिवार मूर्ति स्थापित करने से पहले फूल से  स्वच्छ कोने को सजाते हैं। जब मूर्ति स्थापित हो जाती है, तब मूर्ति और पंडालों को फूलों और अन्य सामग्री के साथ सजाया जाता है। लेकिन आखिर गणेश चतुर्थी की शुरुआत कब और कहा से हुई ये शायद ही किसी को पता हो। तो चलिए जानते है यह उत्सव कब और क्यों शुरू हुआ।

क्यों मनाया जाता है गणपति महोत्सव?

गणेश चतुर्थी का त्यौहार मानाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। पहली बार गणेश चतुर्थी का पर्व कब मनाया गया इस विषय पर कहा जाता है कि पुणे में मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी के ज़माने (1630-1680) से गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जा रहा है। भगवान गणेश उनके कुल देवता थे अतः पेशवाओं ने इस उत्सव के प्रति अपने राज्य में नागरिकों को प्रोत्साहित किया।

पेशवा साम्राज्य के पतन के बाद गणेश उत्सव एक राज्य उत्सव न होकर एक परिवार के उत्सव बन कर रह गया। स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणेश चतुर्थी के उत्सव को महाराष्ट्र में फिर से लोकप्रिय बनाया और यह उत्सव राज्य स्तर पर मनाया जाने लगा।

लोकमान्य तिलक ने विचार किया कि श्रीगणेश ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो समाज के सभी स्तरों में पूजनीय हैं। गणेशोत्सव एक धार्मिक उत्सव होने के कारण अंग्रेज शासक भी इसमें दखल नहीं दे सकेंगे। इसी विचार के साथ लोकमान्य तिलक ने पूना में सन् 1893 में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की। तिलक ने गणेशोत्सव को आजादी की लड़ाई के लिए एक प्रभावशाली साधन बनाया।

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धीरे-धीरे पूरे महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाया जाने लगा। ये वो दौर था जब अन्य धर्मों के लोग भी हिंदू धर्म पर हावी हो रहे थे। इस संबंध में लोकमान्य तिलक ने पूना में एक सभा आयोजित की। जिसमें ये तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए। 10 दिनों के इस उत्सव में हिंदुओं को एकजुट करने व देश को आजाद करने के लिए विभिन्न योजनाओं पर भी विचार किया जाता था।

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