एक मिनट में अगर 10 बार झपकती है आंखें, तो आप भी हो सकते हैं अंधे
लखनऊ। अगर आपकी पलकें सामान्य से ज्यादा बार झपकती हैं, आंखों में खुजली होती है या आंखें चौधिंया जाती हैं, तो आपको है ब्लेफेरोस्पाज्म बीमारी। इस बीमारी में पलकों के बार-बार झपकने से न केवल दर्द होता है, बल्कि आंखों की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं। इससे नेत्रहीनता का खतरा बढ़ जाता है।
मांसपेशियों के सिकुड़न के कारण पलकें पूरी तरह बंद हो जाती हैं, जिससे आंखें और नजरों के पूरी तरह सामान्य होने के बाद भी व्यावहारिक नेत्रहीनता उत्पन्न हो सकती है। यह एक वंशानुगत मांसपेशियों की बीमारी का भी एक लक्षण हो सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक सामान्य तौर पर इंसानों की पलकें एक मिनट में 10 बार तक झपकती हैं।
इस बीमारी के कारण
जन्म से संबंधित : एक शिशु के मांसपेशीयों के विकास में समस्या आने से ऊपरी पलक में ब्लेफेरोस्पाज्म हो जाता है। अगर पलक झपकने से बच्चे को देखने में परेशानी हो रही है, तो तुरंत सर्जरी करानी चाहिए नहीं तो आगे चलकर नेत्रहीनता हो सकती है।
बूढ़ापे से संबंधित : उम्र बढ़ने से ब्लेफेरोस्पाज्म होना आम है। उम्र बढ़ने से लीवेटर ऊतकों के पलकें उठाए रखने के
यह भी पढ़ें-हेल्थ भी रहेगी मस्त और माइंड भी चलेगा जबरदस्त, बस नाश्ते में खाना होगा ये
उपचार के लिए करें व्यायाम
–दाएं हाथ के अंगूठे को सीधा तानकर रखते हुए अन्य अंगुलियों से मुट्ठी बंद कर लें। दाएं हाथ को कंधों की ऊंचाई तक सीधा सामने की ओर उठाकर रखें। अब दृष्टि को बिना पलक झपकाए अंगूठे पर केन्द्रित करें। ऐसा पांच बार करें।
–अब दाएं हाथ को सामने से हटाकर धीरे-धीरे दायीं ओर ले जाएं। उस समय दृष्टि भी अंगूठे पर केन्द्रित रखते हुए दांयी ओर ले जाएं। ध्यान रहे कि चेहरे को स्थिर रखते हुए केवल पलकों को ही दायीं ओर ले जाना है। यह क्रिया बांयी ओर भी करें।
यह भी पढ़ें-चीनी, तेल और नमक ले लेंगे जान, एक दिन में सिर्फ इतना करें इस्तेमाल
–चेहरे को सामने की ओर स्थिर रखकर आंख की पुतलियों को ज्यादा से ज्यादा ऊपर की ओर ले जाएं। पुतलियों को तब तक ऊपर रखें, जब तक आंखों में जलन के साथ पानी न निकलने लगे। यह क्रिया नीचे, दायीं और बायीं ओर से भी करें।
बिगड़ सकती है चेहरे की बनावट भी
ब्लेफेरोस्पाज्म से एक या दोनों आंखें प्रभावित हो सकती हैं। कभी कभी इस समस्या से व्याक्ति के चेहरे की बनावट भी बदल जाती है, लेकिन उसके देखने की क्षमता प्रभावित नहीं होती। आगे चलकर यह मांसपेशियों, नसों, मस्तिष्क या आंखों को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।