यूपी के इन दो गांवों में अभी भी ढिबरी युग, सीएम योगी ज़रा ‘प्रकाश डालें’

ढिबरी युगअंबेडकरनगर। ‘कहां तो तय था चरागा हरेक घर के लिए/आज चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।’ हिंदी गजलों को जन-जन से जोड़ने वाले कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति उत्तर प्रदेश के दो गांवों-उसरहा और बगिया की याद दिलाती है, जहां 21वीं सदी में भी बिजली नहीं पहुंची है। सरकार हर घर को बिजली से रोशन करने का दंभ भर रही है। मगर कुछ ऐसे भी गांव हैं, जहां आजादी के सात दशक बाद भी किसी को बिजली मयस्सर नहीं हो सकी है।

महरुआ थाना क्षेत्र के उसरहा व बगिया गांव जिले के दो ऐसे गांव हैं, जहां के नागरिक आज भी ढिबरी युग में जी रहे हैं। यहां सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रकाश की योजनाएं बिल्कुल निर्थक साबित हो रही हैं। वादे, वोट और फिर वादे..। हर सरकार का रवैया देखते-देखते गांव के लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।

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लोगों का कहना है कि सरकार सिर्फ दावे कर रही है और उसे पूरे मन से हकीकत के धरातल पर उतारने में कोताही कर रही है।

बगिया गांव के मुन्ना का कहना है कि आजादी मिले सात दशक से ज्यादा का समय बीतने को है, अभी भी उनके गांव के लोग बिजली के बल्ब की रोशनी का एहसास नहीं कर सके हैं। कई बार लिखा-पढ़ी भी हुई। बिजली विभाग के अधिकारी सत्यापन करने आए और आस जगाकर चले गए।

इसी गांव के गया प्रकाश का कहना है, “हम तो अब निराश हो चले हैं। हम तो यह मानकर चलते हैं कि सरकारें सिर्फ वादे करने के लिए हैं और हम वोट देने के लिए। कोई भी सरकार आती है, तो हमारे गांव की तरफ कभी ध्यान नहीं देती।”

इसी गांव के भगवान दीन सरकार की नीतियों से अत्यंत दुखी हैं। उनका कहना है कि तमाम नेता खुद आलीशान मकानों में रहकर बिजली से संचालित तमाम उपकरणों का लाभ ले रहे हैं और उन्हें वोट देकर सत्ता तक पहुंचाने वाली जनता ढिबरी युग में जी रही है। इससे बड़ी विडंबना और कुछ हो ही नहीं सकती।

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उसरहा गांव के राम ललन यादव का कहना है कि यहां बिजली सपना हो गई है। खास तौर से जब विभिन्न प्रकार की मीडिया पूरी तरह से सक्रिय है। ऐसे में गांव की जनता न तो टेलीविजन के जरिए देश-विदेश की गतिविधियों से अवगत हो पा रही है और न ही उनके मोबाइल ही चार्ज हो पा रहे हैं। सारी भाग-दौड़ निर्थक साबित हुई है।

इसी गांव के रंजय यादव भी स्थानीय जन प्रतिनिधयों से लेकर सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों की नीतियों से अत्यंत खफा हैं। उनका कहना है कि वर्तमान समय में जब दुनिया 21वीं सदी में पहुंच चुकी है और उसके दो दशक बीत चुके हैं, ऐसे में उनका गांव सोलहवीं शताब्दी में जीने को विवश है। वाकई मेरा देश महान है।

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