आई एक और बंदिश, ‘गैर-महरम से औरतों का चूड़ी पहनना नाजायज़ और गुनाह’

लखनऊ। ‘फतवों की नगरी’ से एक और फतवा जारी किया गया है। करीब हर बार की तरह इस बार भी बंदिश महिलाओं के लिए ही लगाई गई है। दारुल उलूम देवबंद ने रविवार को फतवा जारी किया।

नगर के मोहल्ला बड़जियाउलहक निवासी अहमद गौड़ ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से लिखित सवाल किया था कि हमारे यहां आम तौर पर चूड़ियां बेंचने व पहनाने का काम मनीहार बिरादरी से संबंध रखने वाले लोग करते हैं। चूड़ियां पहनने के लिए औरतों को बाहर जाना पड़ता है और अपने हाथ गैर मर्दों के हाथों में देने पड़ते हैं। क्या इस तरह घर से निकलकर या घर में रहकर औरतों का गैर मर्दों से चूड़ी पहनना जायज है?

गैर मर्दों

इसी सवाल पर दारुल उलूम देवबंद के मुफ्तियों की खंडपीठ ने कहा कि गैरमहरम मर्द का अजनबी औरतों को चूड़ी पहनाना नाजायज और गुनाह है।

दारुल उलूम देवबंद ने फतवे में मुस्लिम महिलाओं का गैर-महरम मर्दों से चूड़ियां पहनने को गलत करार दिया है। देवबंद के मुफ़्ती तारिक क़ासमी ने फतवा जारी करते हुए कहा कि गैर-महरम से अजनबी औरतों का चूड़ी पहनना नाजायज़ और गुनाह है, जिनसे खून का रिश्ता न हो, ऐसे में गैर मर्दों के हाथों से चूड़ी पहनने के लिए औरतों का बाहर निकलना भी मना है। फतवे में इसे गुनाह बताया गया है।

इससे पहले सहारनपुर के दारुल उलूम देवबंद ने संपत्ति और जीवन का बीमा करने और कराने को नाजायज बताया गया है। दारुल ऊलूम के फतवे का देवबंदी उलेमा ने समर्थन किया है।

इस फतवे में जान माल और संपत्ति का बीमा करना और कराना दोनों को इस्लाम की रोशनी में  गैर शरई बताया गया है। फतवे में बीमा से मिलने वाला लाभ सूद की श्रेणी में आता है। इस लिहाज से उलेमा की राय में बीमे को नाजायज करार दिया गया।

दरअसल गाजियाबाद के व्यक्ति ने दारुल उलूम से यह फतवा लिया है। इतना ही नहीं फतवे में कहा गया है कि कोई भी बीमा कंपनी इंसान की जिंदगी नहीं बचाती।  इसलिए सिर्फ अल्लाह पर भरोसा होना चाहिए। बीमा कंपनी को जो भी पैसा मिलता है, वह उसे कारोबार में लगाती है और उसका मुनाफा बीमा धारकों में बांटा जाता है। लिहाज इस सूरतेहाल में जो भी रकम बीमे से  मिलती है वो सूद पर आधारित होती है। और सूद इस्लाम में हराम है। इस फतवे का देवबंदी उलेमा ने समर्थन किया है।

देवबंद के ऑनलाइन फतवा विभाग के चेयरमैन मुफ़्ती अरशद फारूकी ने कहा, “जब इस्लामी हुकूमत होती थी तो वे लोगों की जान माल की हिफाजत करती थी। लेकिन अब इस्लामी हुकूमत नहीं है तो ये बिमा कंपनियां आ गईं। ये लोगों को बिमा के नाम पर जान माल की सुरक्षा का भरोसा देती हैं। इसमें इस्लामी उलमा कहते हैं कि यह एक तरह का जुआ है और धोखाधड़ी। जुआ और धोखाधड़ी की बुनियाद पर जीवन बिमा या प्रॉपर्टी के बिमा को नाजायज करार दिया है।”

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