कोरोना माता मंदिर मामला: याचिका हुई खारिज, लगा 5,000 रुपये का जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में बने कोरोना माता मंदिर को ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका प्रक्रिया का दुरुपयोग बताते हुए खारिज कर दी। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने याचिका खारिज करने के साथ ही याचिकाकर्ता पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। पीठ का कहना है कि जिस जगह मंदिर बनाया गया था, वह जमीन विवादित थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता की दलील है कि यह उसकी निजी जमीन है और निर्माण स्थानीय नियमों के अनुसार किया गया है तो उसने उचित कानूनी उपाय का इस्तेमाल नहीं किया। कोर्ट का कहना है कि अब तक, याचिकाकर्ता ने इस देश के लोगों को संक्रमित करने वाली अन्य सभी संभावित बीमारियों के लिए मंदिरों का निर्माण नहीं किया है।

भूमि ही विवादित थी, जैसा कि दर्ज किया गया है। इस संबंध में पुलिस में एक शिकायत की गई थी। पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि यह स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस कोर्ट के अधिकार क्षेत्र की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। रिट याचिका को 5,000 रुपये का जुर्माना लगाने के साथ खारिज किया जाता है। जुर्माने की राशि चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड वेलफेयर फंड में जमा करायी जाए।

दरअसल, याचिकाकर्ता दीपमाला श्रीवास्तव ने मौलिक अधिकार के उल्लंघन को लेकर संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का उल्लेख करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। प्रतापगढ़ के जूही शुकुलपुर गांव में कोरोना माता मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर का निर्माण 7 जून को किया गया था और इस मंदिर 11 जून की रात को गिरा दिया गया। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इसे पुलिस ने ध्वस्त कर दिया। जिसने आरोप से इनकार करते हुए कहा कि यह एक विवादित स्थल पर बनाया गया था और विवाद में शामिल पक्षों में से एक ने इसे तोड़ दिया।

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