एमए के प्रश्नपत्र में आया चाणक्य के ‘GST’ वाला सवाल, छात्रों ने किया विरोध

एमएनई दिल्ली। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के एमए यानी की मास्टर ऑफ आर्ट्स के पॉलिटिकल साइंस में 15-15 नबंर के ऐसे प्रश्न पूछे गए जोकि बच्चों को पढ़ाया ही नहीं गया था।

दरअसल प्रश्नपत्र में इकोनॉमिक्स को जीएसटी से जोड़कर निबंध लिखने को दिया गया था। जबकि सच तो यह है कि सामान्य से लेकर बड़े-बड़े C.A तक मोदी सरकार के जीएसटी को समझने में असफल हैं।

प्रश्नपत्र में पूछे गए ऐसे सवालों पर छात्रों का कहना है कि प्राचीन और मध्यकालीन भारत में सामाजिक और राजनीतिक विचार के तहत ये टॉपिक्स उनके कोर्स का हिस्सा नहीं हैं।

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वहीं पेपर तैयार करने वाले प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा का कहना है कि हमने इस पर विचार किया और पाया कि दोनों विचारकों के दर्शन को नए उदाहरणों जैसे जीएसटी और ग्लोबलाइजेशन के जरिए छात्रों को पढ़ाया जाए।

उन्होंने कहा कि यह मेरा विचार था कि छात्रों को इन उदाहरणों से परिचित कराया जाए। अगर ये किताब में नहीं हैं तो क्या हुआ? क्या ये हमारा दायित्व नहीं है कि पढ़ाने के नए तरीके खोजे जाएं।

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प्रोफेसर मिश्रा के मुताबिक कौटिल्य (चाणक्य) का अर्थशास्त्र पहली भारतीय किताब है जो जीएसटी के वर्तमान स्वरूप का संकेत देती है। जीएसटी का प्राथमिक कॉन्सेप्ट है कि उपभोक्ता को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिलना चाहिए। साथ ही  जीएसटी का यह मतलब है कि देश की इकोनॉमी और वित्तीय व्यवस्था एक समान और एकीकृत होनी चाहिए।

बता दें कि चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है और चाणक्य पहले ऐसे  विचारक थे जिन्होंने राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को एकीकृत बनाने का विचार दिया था।

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