“आंदोलन में किसानों की मौत का कोई डेटा नहीं”: केंद्र सरकार

कृषि क़ानून बिल के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 14 महीनों से आंदोलन कर रहे किसानों में से कई किसानों की दिल्ली की सीमा पर ही मौत हो गई। दिल्ली और NCR में विरोध प्रदर्शन के दौरान कितने किसानों की मृत्यु हुई? किसानों के ख़िलाफ़ कितने मामले दर्ज किए गए? जिन किसानों की मृत्यु हुई, क्या सरकार उनके परिवार जनों को वित्तीय सहायता देने पर विचार कर रही है? लोकसभा में कई सांसदों ने केंद्र सरकार से ये तमाम सवाल पूछे। किसानों के मौत की संख्या के सवाल पर केंद्र सरकार ने बताया की सरकार के पास किसी भी किसान के मरने की कोई जानकारी नहीं है।

Narendra Singh Tomar

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने लोकसभा में लिखित जवाब देते हुए कहा की, “कृषि मंत्रालय के पास इस बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं है। ऐसे में वित्तीय सहायता देने का सवाल नहीं उठता।” इस मामले पर कैबिनेट मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला (Pushottam Rupala), “लोकल अथॉरिटी से रजिस्टर्ड डेथ के आंकड़े राज्य प्रशासन के पास भेजा जाता है और फिर वह केंद्र सरकार के पास पहुँचता है। यह डाटा गृह मंत्रालय के पास जमा होता है, इसमें आंकड़े छुपाने की बात नहीं है।”

Purshottam Rupala

पुरुषोत्तम रुपाला (Purshottam Rupala) की बातों का जवाब देते हुए समाजवादी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव (Ram Gopal Yadav) ने कहा की, “आप जानते हैं इस सरकार के बयान सुन-सुनकर कान पक गए हैं। अब सरकार के बयान का कोई नोटिस नहीं लेता।”

Ram Gopal Yadav

कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा (Pratap Singh Bajwa) ने कहा है कि, “कृषि मंत्री का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। कृषि मंत्री का जबाव दिखाता है कि सरकार कितनी असंवेदनशील है। सरकार के पास देश में 100 करोड़ से ज़्यादा लोगों के वैक्सीनेशन के रिकॉर्ड हैं। लेकिन राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर कितने किसानों की मौत हुई, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह सरकार गवर्नेंस के क़ाबिल नहीं है।”

Pratap Singh Bajwa

बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरदेव सिंह यादव (Hardev Singh Yadav) ने कहा की, “कृषि मंत्री का जवाब वाजिब है। उन्होंने ठीक कहा है। सवाल यह है कि आंदोलन के दौरान ना कोई गोली कांड हुआ और ना ही लाठीचार्ज हुआ, फिर किसानों की मृत्यु कैसे हुई? इसकी बिना जाँच के सरकार आँकड़े कैसे दे सकती है? किसान संगठन जो आंकड़े दे रहे हैं उस पर भी विचार करना होगा।”

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