मृत शरीर में जान फूंकना हो जाएगा संभव, जानें कैसे होगा ये चमत्कार

मृत शरीर में जान फूंकनानई दिल्ली। आज टेक्नोलॉजी उस स्तर पर पहुंच गई है जहां हर नामुमकिन काम भी चुटकियों में हो जाता है। फिर बात चाहे किसी को जिंदा करने की ही क्यों ना हो।

जी हां, अब अगर आप मरने के बाद भी जिंदा रहना चाहते है और अपनी बीमारी का इलाज कराना चाहते है तो, बस ये काम अब आसानी से हो सकता है।

दरअसल 2016 अक्टूबर महीने के शुरुआती दिनों की बात है, जब एक 14 साल की सड़की कैसंर की बीमारी से पीड़ित थी और मरने वाली थी। लेकिन लड़की मरने के बाद अपना शरीर दफनाना नहीं चाहती थी।

इसलिए उसने एक ब्रिटिश जज को एक खत लिखा और कहा कि मैं केवल 14 वर्ष की हूं और मरना नहीं चाहती हूं। लेकिन मैं मरने वाली हूं।

मैं और अधिक समय के लिए जीवित रहना चाहती हूं क्योंकि मुझे लगता है कि भविष्य में कैंसर का ईलाज अवश्य खोज लिया जायेगा, जो मुझे भी जीवित कर सकेगा। मेरे शरीर को कम तापमान युक्त जगह पर रखकर उसे संरक्षित किया जाये और मुझे फिर से ठीक होकर जीवित होने का एक मौका दिया जाये, भले ही वो सौ बर्षों के लिए ही क्यों ना हो।

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तो आखिर वह विकल्प क्या था, जिसकी वजह से उस लड़की को लगता था कि वह फिर से जीवित हो सकेगी। साधारण शब्दों में उसने खुद को बर्फ में जमा देने की इच्छा जाहिर की थी, जो देहांत के बाद कई लोगों के साथ किया जाता है।

कारण यह है कि मरने के बाद शवगृह में दाह-संस्कार अनुष्ठान जैसे कि, दफनाना, अंतिम संस्कार या ममीकरण के दौरान समय के साथ-साथ तेजी से शरीर भी नष्ट होने लगता है। ऐसे में भविष्य में उस शरीर के पुनरुद्धार की कोई संभावना बची नहीं रह पाती है।

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लेकिन वहीं दूसरी तरफ परिशीतन वातावरण में संरक्षित शरीर के साथ ऐसा कर पाना संभव है, खासकर जब इसे चिकित्सिय देखरेख में वैज्ञानिक तरीके से किया गया हो। यह मुश्किल और लंबी प्रक्रिया है और सुचारु रूप से करने के लिए, इसे मरने के तुरंत बाद शुरु कर देना चाहिए।

मूलतया इसका अर्थ है कि इसमें शरीर के सारे रक्त को शरीर से बाहर निकाल लिया जाता है और उसकी जगह एंटीफ्रीजर और अन्य दूसरे रसायन डाले जाते हैं ताकि मरने के बाद रक्त और ऊत्तक थक्का न हों और शरीर का अंग सड़े नहीं।

फिर इसे माईनस 130 डिग्री सेल्सियस तापमान में रख दिया जाता है जहां टैंक में द्रव नाट्रोजन भरा रहता है, जो तापमान को 196 डिग्री सेल्सियस से नीचे कभी नहीं जाने देता है।

यह प्रक्रिया काफी मंहगी है लेकिन इसके पीछे केवल एक ही सोच है कि शायद भविष्य में विज्ञान उन लाइलाज बीमारियों का कोई इलाज ढ़ूंढ़ ले और उन बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को फिर से जीवन प्रदान कर सके।

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