राज्यसभा जीतकर भी भाजपा के हाथ लगी शिकस्त, ये तीन बड़े कारण तख्तापलट के लिए काफी!

नई दिल्ली। बीते दिन हुए राज्यसभा चुनावों में भले ही 11 सीटें जीत भाजपा ने अपनी पीठ थपथपा ली है। वहीं 58 से 69 सीटें हासिल करने की खुशी में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह विपक्ष को ललकारते हुए अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की चुनौती दे रहे हैं, लेकिन फिर भी साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में साल 2014 वाला जलवा दिखा पाने में अभी पार्टी बहुत पीछे खिसक चुकी है। यानी यदि भाजपा को लोकसभा चुनावों में एक बार फिर भगवा लहराना है तो उन्हें एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ेगा। फिलहाल आंकड़ों को देखते हुए ये हो पाना अभी बहुत मुश्किल है।

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भाजपा की शिकस्त

खबरों के मुताबिक़ राज्यसभा की 58 सीटों के लिए हुए चुनावों के नतीजे शुक्रवार शाम को आ गए। इस चुनाव के नतीजों के बाद राज्यसभा में बीजेपी के खाते में 11 सीटों की वृद्धि हुई, जबकि कांग्रेस ने अपनी चार सीटें खो दी हैं।

शुक्रवार को हुए चुनाव में बीजेपी के 28 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। इस तरह से बीजेपी को 11 सीटों का फायदा हुआ है।

वहीं कांग्रेस ने केवल 10 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि पहले उसका 14 सीटों पर कब्जा था। इस तरह कांग्रेस को चार सीटों का नुकसान हुआ है।

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आंकड़े यह दिखाते हैं कि 245 सदस्यीय सदन में अब बीजेपी की सीटों की संख्या मौजूदा 58 से बढ़कर 69 हो जाएगी और कांग्रेस की सीटें अब 54 से गिरकर 50 रह जाएगी। हालांकि, बीजेपी और उसके सहयोगी दल (एनडीए) अभी भी राज्यसभा में बहुमत से काफी दूर हैं।  

इस बात को इस तरह से समझा जा सकता है कि भाजपा के पाले में आईं 69 सीटें और समर्थन में करीब 19 सीटें यानी कुल भाजपा की झोली में 88 सीटें ही आ रही हैं।

वहीं राज्यसभा में बहुमत के लिए जरूरी हैं 123 सीटें जिस आकड़ें को छू पाने में भाजपा का कोई भी जोड़ तोड़ फिलहाल तो काम आता नहीं दिखाई दे रहा है।

बीजेपी भले ही राज्यसभा में जीत गई, लेकिन उसकी परेशानियां भी लगातार बढ़ रही हैं। पार्टी का सहयोगी दल तेलुगु देशम पार्टी जो कि चार साल से साथ थी, वह अब अलग हो गई है। सदन में टीडीपी के छह सदस्य हैं।

फिर भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे अपने प्रमुख विपक्षी दलों की संख्या में गिरावट से बीजेपी खेमा काफी उत्साहित है।

सपा की झोली में केवल एक सीट आई है जबकि सदन में उसके छह सदस्यों का कार्यकाल अब खत्म होने जा रहा है।

बीजेपी का मानना है कि अब वह पहले से मजबूत स्थिति में होगी। पर्याप्त संख्याबल नहीं होने के कारण मोदी सरकार द्वारा लाए गए विधेयक लोकसभा में पारित हो जाने के बावजूद राज्यसभा में आकर अक्सर अटक जाते हैं। लोकसभा में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है।

राज्यसभा में विपक्षी दलों के एकजुट हो जाने से मोदी सरकार को विधेयक पारित कराने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिली अप्रत्याशित जीत से उसे सदन में अपनी संख्या बढ़ाने में मदद मिली है, जबकि कांग्रेस के हाथ से कई राज्यों की सत्ता जाने के बाद उसकी स्थित सदन में लगातार कमजोर होती जा रही है।

लिहाजा, इस स्थिति में एक बात साफ है कि मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल में बीजेपी को राज्यसभा में बहुमत नहीं मिलेगा।

इसके लिए उसे एक बार फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत में आने के साथ-साथ 2018 और 2019 में होने वाले विधानसभा चुनावों में बढ़त बनानी होगी।

ऐसी स्थिति में बीजेपी के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अपने हिदुत्व एजेंडे का साथ पकड़ना आसान नहीं होगा। नतीजा, अगले आम चुनावों में एक बार फिर उसे सिर्फ वादों के साथ प्रचार करना होगा।

बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में विकास के एजेंडे के साथ-साथ अपने हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ाने का वादा किया था।

चुनाव नतीजों के बाद जब केन्द्र में मजबूत मोदी सरकार का गठन हुआ तो पार्टी ने अच्छे दिन लाने के लिए तेज विकास की नीतियों को आगे बढ़ाया।

अब जब 2019 के आम चुनाव में महज एक साल का वक्त बचा है, ऐसी स्थिति में जनता के उठने वाले सवालों को रोकना सरकार के बस की बात नहीं होगी।

गौरतलब है कि, हिंदुत्व भाजपा के एजेंडे में है। मोदी सरकार ने इसी के लिए बीते 4 साल के दौरान यूनीफॉर्म सिविल कोड, धारा 370 को हटाने और लोकसभा के साथ-साथ देशभर में विधानसभा चुनावों को कराने मसौदा तैयार किया है।

लेकिन इन सभी मसौदों पर आगे बढ़ने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है, जिसके लिए यह जरूरी है कि बीजेपी को लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा में विशेष बहुमत मिले।

हिंदुत्व एजेंडे पर खरा उतरने के लिए यह भी जरूरी है कि बीजेपी की कम से कम 15 राज्यों में भी विशेष बहुमत वाली सरकार मौजूद रहे। हालांकि मौजूदा समय में बीजेपी के 15 राज्यों में मुख्यमंत्री के साथ-साथ 21 राज्यों में गठबंधन की सरकार है। लेकिन राज्य सभा में बहुमत की संभावना 2019 के चुनावों के बाद बनने की स्थिति में इस आंकड़े में भी फेरबदल देखने को मिल सकता है।

गौरतलब है कि, जहां हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 2019 के आम चुनावों के तुरंत बाद होंगे वहीं आंध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और तेलंगाना का चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ कराया जाएगा।

इसके अलावा 2019 लोकसभा चुनावों से ठीक पहले 2018 में छत्तीगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, मिजोरम और राजस्थान के विधानसभा चुनाव कराएंगे।

इन चुनावों के बाद यदि केन्द्र में बीजेपी को लोकसभा और राज्यसभा में विशेष बहुमत के साथ-साथ 15 राज्यों में दो-तिहाई बहुमत वाली सरकार रहेगी तभी मोदी सरकार हिंदुत्व के एजेंडे पर फैसला ले पाएगी।

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