त्रिदेवों के आशीर्वाद से बढ़कर है ये व्रत, गंगा पुत्र देते हैं ‘महाबली भीम’ जैसी संतान

हिंदू पंचाग के अनुसार माघ माह की शुक्ल पक्ष अष्टमी को भीमाष्टमी के रुप में मनाया जाता है. इस दिन महाभारत के मुख्य किरदार भीष्म पितामाह ने अपने शरीर को छोड़ा था. इस दिन को निर्वाण दिवस के रुप में मनाया जाता है.  आज के दिन किया गया विधि-पूर्वक व्रत शुभ फलदायी होता है.

भीमाष्टमी

भीष्म को गंगा का पुत्र माना जाता है और उन्हीं से पितामह को इच्छाशक्ति से प्राण त्यागने का वरदान प्राप्त था. इस बारे में पितामह ने अर्जुन को बता दिया था, जिससे युद्ध में शिखंडी की आड़ में उसने पितामह पर बाण चला दिए थे और वो बाणों की शय्या पर लेट गए थे. युद्ध के समय सूर्य दक्षिणायन में था. इच्छाशक्ति के कारण उन्होनें अपने प्राणों को नहीं त्यागा और शुभ समय का इंतजार किया. माघ माह की संक्रांत के बाद उन्होनें प्राण त्यागने के लिए अष्टमी का दिन निश्चित किया.

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महाभारत की कथा के अनुसार इस दिन अपनी इच्छा से शरीर त्याग किया था. भीष्म पितामह के निमित्त जो श्रद्धालु तिल, जल के साथ श्राद्ध, तर्पण करता है और जरुरतमंद लोगों को दान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

भीमाष्टमी व्रत के लाभ

भीष्म अष्टमी का व्रत करने वाले के पाप नष्ट हो जाते हैं और साथ ही पितृदोष से मुक्ति और पितरों को शांति भी मिलती है.

मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने वाली महिला को बलशाली पुत्र की प्राप्ति होती है. व्रत करने वाले श्रद्धालु को भीष्म पितामह की आत्मा को सुकून देने के लिए इस दिन तर्पण करना चाहिए.

 

 

 

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