Badrinath Temple: आखिर क्यों ? बद्रीनाथ धाम में नहीं बजाया जाता शंख
देश के चार प्रमुख धामों में से एक बद्रीनाथ धाम। हिमालय पर्वत की श्रंखलाओं में बसे इस पौराणिक और भव्य मंदिर में भगवान श्रीहरी विराजमान हैं। हिमालय की चोटियों के बीच अटल इस पावन धाम का सनातन संस्कृति में काफी महत्व है। हर भक्त की इच्छा होती है कि जीवन में एक बार वह बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जरुर जाए। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पर पहुंचने का रास्ता भी काफी दुर्गम है।
बद्रीनाथ मंदिर वैसे तो कई रहस्य अपने अंदर समेटे हुए है लेकिन इसमें से एक रहस्य ऐसा है जो आज तक लोगों के दिमाग में घूम रहा है। आमतौर पर किसी भी मंदिर में पूजा के समय शंख बजाना अनिवार्य माना जाता है, लेकिन बद्रीनाथ मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां कभी भी शंख नहीं बजाया जाता। दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक और बेहद ही रहस्यमय कहानी छिपी हुई है, जिसके बारे में जानकर शायद आप भी हैरान हो जाएंगे…
इस मंदिर में शंख नहीं बजाए जाने के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक समय में हिमालय क्षेत्र में दानवों का बड़ा आतंक था। दानव इतना उत्पात मचाते थे कि ऋषि मुनि न तो मंदिर में भगवान की पूजा अर्चना तक कर पाते और न ही अपने आश्रमों में। यहां तक कि वो उन्हें ही अपना निवाला बना लेते थे। राक्षसों के इस उत्पात को देखकर ऋषि अगस्त्य ने मां भगवती को मदद के लिए पुकारा, जिसके बाद माता कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और कटार से सारे राक्षसों का विनाश कर दिया।
हालां,कि आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस मां कुष्मांडा के प्रकोप से बचने के लिए भाग गए। इसमें से आतापी मंदाकिनी नदी में छिप गया जबकि वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर छिप गया। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद से ही बद्रीनाथ धाम में शंख बजाना वर्जित हो गया और यह परंपरा आज भी चलती आ रही है।