जानिए, आखिर कैसे दीदी का सबसे खासमखास बन गया भगवाधारी

टीएमसीनई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए कभी सबसे ज्यादा खासियत रखने वाले मुकुल रॉय अब टीएमसी से सारे नाते तोड़ चुके हैं। मुकुल रॉय को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में 6 साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया था लेकिन कभी दीदी के बाद पार्टी में सबसे दिग्गज नेता की हैसियत रखने वाले रॉय ने टीएमसी का साथ छोड़ते ही भगवा चोला धारण कर लिया है। और तो और पीएम मोदी के साथ काम करने को उन्होंने अपना सौभाग्य तक बता डाला।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

17 अप्रैल 1954 को पश्चिम बंगाल में जन्मे मुकुल रॉय ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत यूथ कांग्रेस से की थी। उस समय ममता बनर्जी भी इसमें सक्रिय भूमिका में थीं, जिसके बाद से ही ये दोनों नेता आपसी संपर्क में आए। जनवरी 1998 में जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था तब से ही मुकुल रॉय पार्टी से जुड़े छोटे बड़े सभी तरह के फैसलों में मुख्य भूमिका निभाते चले आ रहे थे। रॉय पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।

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अपनी काबिलियत और पार्टी के प्रति लगाव के कारण ही रॉय ने पार्टी में फर्श से अर्श तक का सफर तय किया था। उनकी काबिलियत को देखते हुए ममता ने 2006 में उन्हें पार्टी का महासचिव बना दिया था। जिसके बाद से दिल्ली में टीएमसी का सारा कामकाज मुकुल रॉय ही संभालते रहे।

राज्यसभा से रेलमंत्री बनने का सफर

पश्चिम बंगाल में साल 2001 में हुए विधानसभा चुनाव में मुकुल जगतदल विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे लेकिन कुछ खास नहीं कर सके। इस चुनाव में वे दूसरे नंबर पर रहे थे लेकिन ममता बनर्जी ने उन्हें साल 2006 में पार्टी कोटे से राज्यसभा भेज दिया। 28 मई 2009 से 20 मार्च 2012 तक मुकुल राज्यसभा में टीएमसी के नेता रहे। इसी दौरान उन्होंने यूपीए सरकार में रेल मंत्री का पदभार भी संभाला था।

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टीएमसी से भाजपा का सफर

शारदा चिट फंड घोटाले में नाम आने के बाद से ही रॉय और दीदी के बीच की दूरियां लगातार बढ़ती गईं जिसके बाद साल 2015 में ममता ने मुकुल को पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव पद और राज्यसभा में पार्टी नेता पद दोनों से बेदखल कर दिया। इसी के बाद से ही मुकुल की टीएमसी से दूरियां बढ़ती गईं और दूसरी ओर भाजपा में उनके शामिल होने के कयासों ने तेजी पकड़ ली और आज उन्होंने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की मौजूदगी में पार्टी के सदस्य के रूप में शपथ ली।

माहिर हैं इस कला में

रॉय को उनकी चुनावी प्रबंध की कला के दम पर ही दीदी ने पार्टी में सबसे अहम पद दे रखा था। बंगाल में टीएमसी के बूथ स्तर तक सभी का प्रबंधन संभालने का काम मुकुल के ही कंधों पर था। यही नहीं बंगाल की सत्ता पर लगातार दो बार काबिज होकर इतिहास रचने के पीछे भी रॉय की भूमिका ही सबसे महत्वपूर्ण थी।

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