Akshaya Tritiya 2020: व्रत करने पर कन्याओं को मिलेगा मनचाहा पति, कोई भी कार्य कभी निष्फल नहीं होता

आज अक्षय तृतीया का त्यौहार है और इस दिन लोग सोना खरीदना शुभ मानते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सोना खरीदने से घर में संपत्ति और वृद्धि बनी रहती है. हालांकि इस बार कोरोना वायरस के चलते बढे़ हुए लॉकडाउन की वजह से लोग अपने घरों में बंद है, सर्राफ़ों की दुकानें बंद हैं और आमदनी की तंगी चल रही है. ऐसे में घर की जरुरतों को पूरा करने के चक्कर में इस बार सोने को खरीदने के लिए सौ बार विचार करेंगे. लेकिन आज हम आपको इस दिन की महत्ता जरुर बातएंगे. आइए जानते हैं कि सोना खरीदने के अलावा इस दिन का और क्या महत्तव है…

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वैशाख शुक्लपक्ष तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त या ‘अक्षय तृतीया’ के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान श्री श्वेतवाराहकल्प में वैवस्वत मन्वन्तर के मध्य ‘सत्ययुग’ के आरम्भ की इस पुण्यदाई तृतीया तिथि को माता पार्वती ने मानव कल्याण हेतु अमोघ फल देने वाली बनाया है। फलित ज्योतिष में इस तिथि को विजया तिथि में नाम से जाना जाता है। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो और भी पूज्य हो जाती है।

 

 

मां शक्ति के आशीर्वाद प्रभावस्वरूप इस तिथि के मध्य किया गया कोई भी कार्य कभी भी निष्फल नहीं होता। इसदिन सभी मांगलिक कार्य, व्यापार आरम्भ, गृहप्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, जप-तप, पूजा-पाठ, दान-पुण्य अक्षय रहता है अर्थात वह कभी नष्ट नहीं होता। इस दिन किये जाने वाले अनाचार, अत्याचार, दुराचार, धूर्तता आदि के परिणाम से होने वाला  पापकर्म फल भी अक्षुण रहता है इसलिए शास्त्र कहते हैं कि जीवात्माओं के लिए यह दिन बहुत सावधानी वरतने का है।

 

 

अक्षय तृतीया का महत्व

 

इस तिथि का महत्व समझाते हुए माता पार्वती कहती है कि कोई भी स्त्री यदि वह सब प्रकार का सुख चाहती है उसे यह व्रत करते हुए किसी भी प्रकार का सेंधा आदि व्रतीनमक भी नहीं खाना चाहिए। स्वयं माता ने धर्मराज को समझाते हुए कहा है, कि यही व्रत करके मै भगवान शिव के साथ आनंदित रहती हूं। कन्याओं को भी उत्तम पति की प्राप्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए।

 

जिनको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही हो वे भी इस व्रत को करके संतान सुख ले सकती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से प्राणियों की संताने अक्षय रहती है और उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती।

देवी इंद्राणी ने यही व्रत करके जयंत नामक पुत्र प्राप्त किया। देवी अरुंधती ने यही व्रत करके अपने पति महर्षि वशिष्ट के साथ आकाश में सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त कर सकी थीं। महाराज दक्ष की पुत्री रोहिणी ने यही व्रत करके अपने पति चन्द्र की सबसे प्रिय रहीं, उन्होंने बिना नमक खाए यह व्रत किया था। इस दिन किया गया पाप भी कभी भी नष्ट नहीं होता और हर जन्म में जीव का पीछा करता रहता है।

पूजा विधि

मत्स्य पुराण के अनुसार इस व्रत को करने के लिए मनुष्य को अक्षत से स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु का अक्षत से अभिषेक करना चाहिए। साथ जगतगुरु भगवान नारायण की लक्ष्मी सहित गंध, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धुप, दीप नैवैद्य आदि से पूजा भी करनी चाहिए। अगर भगवान विष्णु को गंगा जल और अक्षत से स्नान कराए, तो मनुष्य को राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है और प्राणी सब पापों से मुक्त हो जाता है। पीपल, आम, पाकड़, गूलर, बरगद, आंवला, बेल, जामुन अथवा अन्य फलदार वृक्ष लगाने से प्राणी सभी कष्टों से मुक्त होकर ऐश्वर्य भोगता है। जिस प्रकार ‘अक्षयतृतीया’ को लगाये गये वृक्ष हरे-भरे होकर पल्लवित- पुष्पित होते हैं उसी प्रकार इसदिन वृक्षारोपण करने वाला प्राणी भी प्रगतिपथ की और अग्रसर होता है।

 

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