तीन तलाक : सरकार के फैसले पर तिलमिलाया ‘पर्सनल लॉ बोर्ड’, खिलाफ रहे संगठनों ने भी जताई आपत्ति
नई दिल्ली। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मनमाने फैसलों से परेशान मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। साथ ही सरकार से इस दिशा में दखल देने की अपील भी की थी। लेकिन जब आज (15 दिसंबर 2017) केंद्रीय मंत्रिमण्डल द्वारा तीन तलाक के खिलाफ विधेयक को मंजूरी दे दी गई तो उन्हीं मुस्लिम महिलाओं का साथ देने वाले संगठनों को यह बात रास नहीं आई।
खबरों के मुताबिक़ उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार ने मनमाने ढंग से अपना फैसला थोपने का काम किया है। उनका कहना है कि ऐसा करने से पहले सरकार को उनसे और मुस्लिम विद्वानों से राय-मशविरा करना चाहिए था।
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तीन तलाक के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में लड़ाई लड़ चुकीं आल इण्डिया मुस्लिम विमिन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने भी कहा कि उन्हें शिकायत है कि गुजारिश के बावजूद केंद्र सरकार ने तीन तलाक संबंधी विधेयक तैयार करने के लिये मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों से कोई बात नहीं की।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक को कुरआन शरीफ की रोशनी में प्रतिबंधित किया था। उसी तरह जो कानून बने, वह भी कुरआन की रोशनी में ही होना चाहिए था। अगर वह ऐसा नहीं होगा तो कोई मुसलमान औरतें उसको कुबूल नहीं करेंगी।
मामले में मुस्लिम विमिन लीग की अध्यक्ष नाइश हसन ने कहा कि विधेयक को मंजूरी देने से पहले केंद्र सरकार को इसे जनता के बीच में चर्चा का विषय बनाना चाहिए था। खुले तौर पर सभी राज्यों में चर्चा के लिये लाना चाहिए था, क्योंकि इंसाफ पसंद कानून बनाना हमारी जरूरत है, न कि सिर्फ कानून बनना।
उन्होंने कहा कि कानून हमेशा बराबरी पर होना चाहिए। इसमें मर्दों को निशाने पर नहीं लिया जाना चाहिए। कानून में ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि तीन तलाक देने वाले को तुरंत जेल ना भेजा जाए। उसे मध्यस्थता के दौर में ले जाना चाहिए।
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बहरहाल, जो भी कानून आएगा, वह तीन तलाक से तो अच्छा ही होगा। गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने तीन तलाक संबंधी विधेयक के मसौदे को आज मंजूरी दे दी।
वहीं आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने कहा कि, ‘तीन तलाक संबंधी विधेयक के मसौदे को हरी झंडी दिखाने से पहले सरकार का मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों और विद्वानों से राय लेना बहुत जरूरी था।’
उन्होंने कहा, ‘अगर हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं तो हमें एक मौका दिया जाना चाहिए था। पर्सनल लॉ बोर्ड और मुस्लिम समुदाय बार-बार कहता है कि हम भी तीन तलाक को रोकना चाहते हैं। अगर सरकार का मकसद वाकई इसे रोकना ही है तो इसे रोकने का इस्लामी तरीका ज्यादा स्वीकार्य होगा। यदि कानून थोपा जाएगा तो ठीक नहीं होगा।’
नोमानी ने आशंका जताई कि कहीं नरेन्द्र मोदी सरकार तीन तलाक के मुद्दे को सरगर्म करके बैंकों में जमा आम लोगों के धन से संबंधित एफआरडीआई की तरफ से ध्यान तो नहीं हटाना चाहती है।
उन्होंने कहा कि, ‘आज जरूरत इस बात की है कि पूरे देश के लोग चिंतन-मनन करें कि यह सरकार करने क्या जा रही है। पूरी संभावना है कि संसद में पहले दिन तीन तलाक संबंधी विधेयक को पारित कर दिया जाएगा और यह मीडिया की खास तवज्जो पा जाएगा। उसके बाद जो बिल आएंगे, उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाएगा।’
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